Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 292
________________ २३. व्यसनशतजनकयुवस्यचिवासवर्णनाधिकारे भावहिकाख्यानकम् २०५ भित्ताणंदण तओ पयंपियं अंब ! वञ्च नियभवणे । ता सा यि नियत्तेउं पच्छन्नं हेरिउ लगा ॥३१९॥ आवद्धपरियरो सो विज्जुविखत्तेहिं पवरकरणेहिं । सब्वे वि हु पायारेऽइक्कमई जाब ता अक्का ।।४००॥ नृणं वीरवरिट्टो गरिमुभवो इमो को वि। तो होज कजसिद्धि त्ति चितिउपडिनियत्ता सा ॥४०१॥ इयरो वि दंतवलभिं गवक्खमम्गेण आरुहइ तीए । एत्थंतरम्मि कुमरी तं दटुं चिंतए एवं ॥४०२।। किं वा करेइ एसो ? किं या जंपेइ ? चिंतिऊण तओ । पावरणपिहियगत्ता सुत्ता सा अलियनिदाए ॥४०३॥ तो अमरदत्तमित्तो तारिसरूचं तयं निएऊण । गिण्हइ वामकराओ कडयं नरनाहनामकं ॥४०४।। कट्टित्तु तओ छुरियं लंछित्ता तीए दाहिणं ऊरूं । तो पुव्युत्तकमेणं नीहरिओ झत्ति झंपाहिं ॥४०॥ तो देवकुले गंतुं सुत्तो नियबुद्धिविवपरितुट्टो । परिचिंतइ कुमरी वि हु अहो ! इमो को वि अइदक्खो ॥४०६॥ घेत्तण रयणकडयं ऊरू लंछित्तु एस नीहरिओ । तं सुट्ट, कयं न मए जं न कया तस्स पडिवत्ती ॥१७॥ इय चिंतिऊण कुमरी सुत्ता रयणीविरामसमयम्मि । इयरो वि साहुलकरो समागओ रायदारम्मि ॥४०८|| पोक्कारतो अन्नायमेस हक्कारिओ पुहइवणा । पभणइ संभंतमणो विन्नत्तिं देव ! निसुणेसु ॥४०॥ धरणियललुलियसीसो पणमित्ता जाब संठिओ ताय । रन्ना नयणुवरखेवेण पभणिओ विन्नवेहि ति ॥४१०॥ विन्नवइ तओ तुम्भेहिं नाह ! पुहईवईहिं महमेवं । देसंतरिओ का परिभविओ ईसरेण ददं ॥४११॥ जम्हा पओससमए सामि ! अहं आगओ विदेसाओ । इच्चाइवइयरं नियुणिऊण सव्वं पि तेणुतं ॥४१२॥ कोवभरभिउडिभासुरभालयलो भणइ भूवई रे रे ! । आणेह मम पुरओ बंधित्तु तयं दुरायारं ॥४१३॥ आएसो त्ति भणित्ता संचलिओ जाव भइयणो ताव । तं नाउ सिग्घ चिय दविणकरो ईसरो पत्तो ॥४१४॥ विन्नवइ देव ! एयन्स दिनमद्धं धणस्स सेसं तु । संपइ देमि जमज वि नो दिन्नं तं निसामेहि ॥४१५|| तम्मि समयन्मि सामिय ! कि मडयं नेमि ? अब एयस्स । दीणारे देमि ? सयं जुत्ता-ऽजुत्तं वियारेसु ॥४१६॥ अवरं च वासरतिगं लोयायारेण संटिओ सामि ! । एसो इह उवणीयं संपइ गिण्हेउ नियविणं ॥४१७॥ मित्ताणंदो राएण पभणिओं भद्द ! गिण्हसु सदव्वं । कारणवसेण जम्हा ठिओ इमो ता अदोसो त्ति ॥४१८॥ एएण धुत्तिओ नरवई वि धुत्तेणमिइ विचिंतेउ । मित्ताणंदो घेत्तुं नियदविणं तं विसज्जेइ ॥४१९॥ । उच्छलियकोउहल्लेण राइणा पुच्छिओ कहं तुमए ? । जोइणिवीटे मारीउवदुयं रक्खियं मडयं ॥४२०॥ अवहियहियओ होऊण नाह ! निसुणेहि भणइ इयरो वि । साहेमि तयमसेसं जं वित्तं मज्झ रयणीए ॥४२१॥ चिंतेगि मडयमारीभयमेयं कह णु नित्थरिस्सामि ? । हुं नायमप्पमत्तम्स किल भयं पभवइ न किं पि ॥४२२॥ इय चिंतिऊण आबद्धपरियरो कड्डिअगमसिधेणुं । जा चिट्ठामि दसदिसं पेच्छंतो ता गए पहरे ॥४२३॥ फेक्कारुगिन्नजलंतजलणजालाकरालनुहकुहग। परिपिकलमपिंगलनयणपहाछुरियदिसिविवरा ॥४२४॥ घोरसिवारिंछोली समागया हविया मए जाव । सहस ति ता पणट्टा सीहस्स करेणुमाल व्य ।।४२५॥ एत्थंतरे नरेसर ! बीए पहरम्मि धूपरसरीरो । कयमुंडमालवेसो पिंगलकेसो चिबिडनासो ॥४२६॥ नियमहकहरविणियहुयवहजालावलीहिं भुंजित्ता । उक्कत्तिऊण नियखंधमडयमंसाई भक्खंतो ॥४२७॥ पप्फोडतो बंभंडखंडयं पायदद्दुररवेण । अट्टहासभीसगपिसायविसरो समुन्भृओ ॥४२॥ करकलियतरलछुरिएण भेसिओ निभएण जाव मए । सहस त्ति ता पणट्टो दिणमणिणो तिमिरनियरो व्व ॥४२९॥ तो देव ! तइयपहरे समागया डाइणीउ उड्डुमरा । फेक्कारनियरपूरियदियंतरा हक्कियाउ मए ॥४३०॥ नट्टाउ जहा उप्पन्ननाणिमो घाइकम्मपगडीओ।ता पह ! तुरिए पहरे जं जायं तं निसामेहिं ॥४३१॥ वररयणघडियआहरणकिरणपन्भारहरियतमपसरा 1 उत्तत्तकणयभासुरतणुप्पहा कामपरिणि व्व ॥४३२॥ उब्बूढपढमजोव्वणमणोहरा तसिरहरिणसमनयणी । कंदप्पभिल्लभल्लि व्य मोहवल्लि ब्व तरुणाण ॥४३३।। रोलंब-गवल-कज्जलसामलओमुक्तकुंतलकलावा । तडितरलकत्तियकरा करालफेकारवर उदा ॥४३४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504