Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२१०
आख्यानकमणिकोश तत्तो चइत्त नरनाह ! अमरदत्तत्तणण तं जाओ। सच्चसिरी वि य सिरिरयणमंजरित्तेण उववन्ना ॥५७४॥ जाओ कम्मय। वि हु मित्ताणंदत्तणण नरनाह ! । जं तइया दुव्बयणं भणियं तेणेह तुह राय ! ॥५७५॥ बालत्तणाओ जाओ तम्स विवागण बंधवविओगो । जाओ य तुज्झ दइयाए वहुयदुभासिएण इमो ॥५७६।। रक्खसिवाओ दुसहो मित्ताणंदेण जं पुरा भणियं । कप्पडियवइयरम्मि तेणं सो पाविओ मरणं ॥५७७॥ एत्तियमेत्तम्स वि भासियम्स नरनाह ! एरिसविवागो । जो पुण कसायवसयाण होइ तं मुणइ सव्वन्न ॥५७८|| परिहरिऊणं ता पुहइपाल ! दुब्वयणगोयरं पावं । जिणनाह भणियधम्मे समुज्जुआ होमु युगइपहे ॥५७९॥ इय निमुणिउं नरिंदो देवीए समन्निओ गओ मुच्छं । चंदणजलण सित्तो सचेयणो कहइ सूरीण ||५८०॥ तुभहिं सामि ! जं मज्झ साहियं नाणचक्खुणा चरियं । तं पञ्चक्खं जायं जाईसरणेण सयलं पि ॥५८१॥ किंतु मडएण तइया जं भणियं तत्थ मज्भ संदहो । ता साहमु मह भयवं ! जम्हा न चवंति मडयाई ॥५८२।। साहेइ तस्स सूरी सिंगग्गाही मरित्तु कप्पडिओ। भवियव्ययावसेणं तत्थ वडे वंतरो जाओ ।।५८३।। दट्टुं मित्ताणंदं पुवकयं वइरमणुसरंतेण । समहिट्टिऊण मडयं पयंपियं तेण तो तइया ॥५४॥ तव्वयणसवणसंजायगरुयवेरग्गसंगओ राया । आबद्धपाणिपउमो पणामपुवं पयंपेइ ॥५८५॥ भयवं! भीमभवाडविपरिभमणुभूयभयपकंपतो । परिचालिऊण कुमरं पवन धुरं धरिम्सामि ॥५८६।। इय पभणिउं नरिंदो मुणिविंदं वंदिगओ नयरे । सह रयणमंजरीए उवभुंजइ विसयसोक्खाई ।।५८७|| कालेण कमलगुत्तं पुत्तं रज्जे ठवित्त सकलत्तो। निक्खंतो सुहचित्तो पासे सिरिधम्मघोसस्स ॥५८८॥ छट्ट-ऽट्ठम-दसम-दुवालसाइं काऊण तिव्वतवचरणं । कयभत्तपरिच्चाओ सवढे सुरवरो जाओ ॥५८९॥छ।। इय तेण मित्तसंतियमणन्नसझं पओयणं विहियं । अहमवि कइपयपयभासणेण तुह मित्तमसमं ति ॥५१०|| ता मम वि मित्त ! कजं तुममेत्तियमन कुणम पसिऊणं । जह तुज्ज पए पेच्छामि जाव जंपंति एयाणि ॥५११॥ ताव य घडियाहरए रयणीए वजिओ तइयपहरो । ता सो चिंतइ धुत्तीए वंचिओ कहमहमिमीए ? ॥५९२।। जा किर मारिउ लम्गो तं जक्खो तिक्खधारछुरियाए । ताच य दीणमुहाए पयंपियं पायवडियाए ॥१९३।। अहमित्थिया अणाहाऽणुकंपणिज्जा सहायवियला य । पयईए अप्पसत्ता मज्भ वहे तुझ गरुयस्स ॥५९४॥ लोयम्मि जसो कित्ती वन्नो सद्दो य करिसो होही? । इय परिभावसु कज्जे भवंति गरुया थिरारंभा ॥५९५॥ परमेरिससितखाए किं मह दिन्नाए तुज्झ विसयम्मि ? । तं चेव बुद्धिमंतो सुंदरमियरं व जं मुणसि ॥५९६।। परमहमईव तुह दंसणस्स तित्तिं न देव ! पावेमि । ता सामि ! संपयं पि हु कहाणयं सुणसु तुममेयं ॥५९७॥ इय सो विलक्खवयणो वट्टइ दोलायमाणसो जाय । तो तीए मलयविसयाए महुरराएण पारद्धं ॥५९८॥ कहिउं संरंभेणं चरियमिमं चारुदत्त सेट्टि स्स । अप्पश्वसंधिबंधेण विरइयं विउसहिययहरं ॥५९९।।
[चारुदत्तचरिउ ] इह भरहि अत्थि पुरि नौमि चंप, पररायचक्कभयनिप्पकंप । धणुकुडिलवंकपायारवलय, सुमहंतहिमालयसरिसनिलय । पयपणयपुरंदररइयपुज्जु, जहिं मोविश्व पत्तु जिणु वासुपुज्जु । जियसत्तु नानु जियसत्तु राउ, तहिं अस्थि अखंडियमुहडबाउ । अन्दगे वि अस्थि तहिं सेट्टि भाणु, सुहि-सयणकमलवणसंडभाणु । जणवन्नणित्र अकलंकदेह, उन्नय जिव बीयाचंदरेह । नामि सुभद्द तमु भज्ज हुयइ, अणुरत्तिय जइ पर देहि जुजुइय ।
१-२. नाम रं०।
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