Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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६. जिनयन्दनफलाधिकारे सेदुवकाख्यानकम् तं अविचलसम्मत्तो निवारि पविसई पुरं जाव । ताव विउवह देवो गुव्विणियं साहुणी एगं ॥१४६।। मगंति हट्टै बराडियं पेच्छिऊण तं राया । चितइ चित्ते जिणसासणस्स मालिन्नमिह गरुयं ॥१४॥ जंपइ अज्जे ! किं लोगगरहणिज्ज तए समारद्धं ? | सा जंपइ मह एवं कम्मवसेणेरिसं जायं ॥१४८॥ होही पओयणं घेय-गुलेण मह राय ! पसबसमयम्मि । पइआवणमेगेगं मग्गेमि वराडियं तेण ॥१४९॥ मा भवउ लाघवं पवयणम्स जंपइ ससंकिओ राया । एहि तुमं मह भवणे तुह सव्वमहं करिस्सामि ॥१५०॥ तो नेउं नियभवणे पच्छन्ने मंदिरम्मि संठबिया । पुत्तं तत्य पसूया य साहुणी देवमायाए ॥१५१॥ बालो रोयंतो न वि थक्कइ उच्चारयाई कुवंतो। सयमेव कुणइ राया परिचिटुं ताण तत्थ ठिओ ॥१५२।। पवयणलाघवरक्खत्थमुज्जुयं पबयणम्मि थिरचित्तं । नाऊण ओहिनाणेण सुरवरो तस्स पच्चक्खो ॥१५३।। संजाओ नरवइणो मणिकिरणफुरंतकुंडलाहरणो । निययपहानियरेणं उज्जोयंता दिसिमुहाई ॥१५४।। जंपइ देवो जिणपक्यणाओ अविचलियमाणसो तं सि । सोहम्मसहामज्झे सोहम्मे तियसपञ्चक्खं ॥१५५।। घणसारसियगुणावलिआवज्जियमाणसेण सुरवइणा । जारिसओ संथुणिओ तारिसओ च्चिय तुमं राय ! ॥१५६॥ अविचलसम्मत्तगुणेण रंजिओ राय ! तुझ तुट्ठो हं । ता गिण्ह गोलयदु गं अट्ठारसचक्कवेहं च ॥१५७॥ हारमिणं ति समप्पिय जंपइ अमरो विमं तु जो हारं । तु पुण संधिम्सइ फुडही सयहा सिरं तस्स ॥१५॥ इय कहिऊणं रन्नो पत्तो भईसणं सुरो झत्ति । राया वि चेल्लगाए हारं अप्पइ पहिट्टमणो ॥१५९॥ देइ सुनंदाए पुणो गोलयजुयलं निएवि तं तीए । पसरियसवक्किवेहवविहुरियमुसरीरजट्टीए ॥१६॥ किमहं कीलिस्सं बालिय व्व एएहिमिय सहासाए ? । जं पञ्चक्खं दिन्नो रन्ना हारो सपत्तीए ॥१६१॥ इय ईसाणुगयाए दाणं दिन्नं जमप्पमुल्लं ति । अवमाणियाए विग्गोवियाऽहमवरोहमज्झम्मि ॥१६२॥ इय अवलंबियरोसाए तयणु विप्फुरियरुदभावाए । रसनियरमुन्वहंतीए फोडियं गोलयदुर्ग पि ॥१६३।। पच्चासन्ने थंभे जाव तओ एक्कगाओ गोलाओ। पयडीभूओ भूगोलयाओ रविबिंबजुंगमं व ॥१६४॥ कुंडलजुयलं दसदिसिपसरियनवकिरिणजालसंवलियं । बीयाओ नीहरियं निदोसं देवदूसदुगं ॥१६५|| दटुं ताणि सुनंदाए फुरियआणंदअमयसित्ताए । अणुभूओऽपुव्वरसो समगं तद्दिवसलामम्मि ॥१६६।। उल्लसियं हियएणं कवोलफलएहिं पुलइयं तह य । वयणेणं पुण वियसंतसरसकमलाइयं सहसा ।।१६७।। उल्लसियं अंगेहिं लोयणजुयलेण किमवि वित्थरियं । रससंकरं वहंती गया सुनंदा नियावासं ॥१६॥ अह अन्नदिणे राया कविलं हकारिऊणिमं भणइ । तुममजं साहूणं भद्दे ! भिक्खं पयच्छेहि ॥१६९।। सा जंपइ निवपुरओ नाहं कुलखंपणं करिस्सामि । जं भिक्खं भिच्छूणं लंपित्त कुलक्कम देमि ॥१७०॥ वज्जरइ निवो जइ तं करेसि एयं हिरन्नकोडीओ । तो देमि तुज्झ जंपइ दासी एवं अभव्वत्ता ॥१७॥ जइ सव्वहिरन्नमयं करेसि मं देव ! तुममिहं तुट्टो । रुट्टो य परवसं मं खंडाखंडिं जइ विहेसि ॥१७२।। तो न वि करेमि एयं विन्नाए निच्छयम्मि सा मुक्का । बीयअभिमगहकज्जे वाहरिओ कालसोयरिओ ॥१७३।। भणियं रे ! मुंच इमं पाणिविणासं तुमं दिवसमेगं । इमिणा जीवइ सो भणइ एस पउरो जणो पउरो ॥१७४॥ रन्ना भणियं दव्वं गिण्हसु तं लक्ख-कोडिपभिईयं । नित्थरउ तुज्झ लोगो अजं तु निवारणीयमिणं ॥१७॥ जा कहवि न पडिवज्जइ ता रुट्टो पत्थिवो भणइ पुरिसे । पाविट्टमिमं घत्तह अहोमुहं अंधकृवम्मि ॥१७६|| पक्खित्तो सो कृवे तत्थ ठिओ महिसयाण पंच सए । मट्टियमयाण काऊण कूरचित्तो विणासेइ ॥१७॥ रत्ना वि भुवणसामी गंतूणं पुच्छिओ जहा मज्झ । अक्खलिओ संजाओ एसो किमभिग्गहो नाह ? ॥१७८|| भणइ जिणो निव ! एसो न पालिओऽभिग्गहो तए जेण । कूवठिएण वि तेणं विणासिया पंच महिससया ॥१७९।। राया विम्हिय-हियओ जंपइ कह नाह ! संभवो तत्थ ।.
.""रहिएणं ? ॥१८०॥
१. पयगुडेण -२० । २. वैभव । ३. युग्ममिव ।
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