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स्थान-२/३/८५
विकुर्वणा करते हैं । इसी प्रकार दो प्रकार के जीव गर्भ में गति-पर्याय पाते हैं । दो प्रकार के जीव गर्भ में समुद्धात करते हैं । दो प्रकार के जीव गर्भ में कालसंयोग करते हैं । दो प्रकार के जीव गर्भ से आयाति जन्म पाते हैं । दो प्रकार के जीव गर्भ में मरण पाते हैं ।
दो प्रकार के जीवों का शरीर त्वचा और सन्धि बन्धनवाला कहा गया हैं, यथा
मनुष्यों का और तिर्यन्च पंचेन्द्रिय का । दो प्रकार के जीव शुक्र और शोणित से उत्पन्न होते हैं, यथा- मनुष्य और तिर्यच पंचेन्द्रिय ।।
स्थिति दो प्रकार की कही गई हैं,यथा-कायस्थिति और भवस्थिति । दो प्रकार के जीवों की कायस्थिति कही गई हैं, यथा-मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की । दो प्रकार के जीवों की भवस्थिति कही गई है, यथा-देवों की और नैरयिकों की ।
आयु दो प्रकार की कही गई है, यथा-अद्धायु और भवायु दो प्रकार के जीवों की अद्धायु कही गई है, यथा-मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की । दो प्रकार के जीवों की भवायु कही गई हैं, यथा-देवों की और नैरयिकों की ।
कर्म दो प्रकार के कहे गये है, यथा-प्रदेश कर्म और अनुभाव कर्म ।
दो प्रकार के जीव यथाबद्ध आयुष्य पूर्ण करते हैं, यथा-देव और नैरयिक । दो प्रकार के जीवों की आयु सोपक्रमवाली कही है, मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिको की ।
[८६] जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में अत्यन्त तुल्य, विशेषता रहित, विविधता रहित, लम्बाई-चौड़ाई आकार एवं परिधि में एक दूसरे का अतिक्रम नहीं करनेवाले दो वर्ष-क्षेत्र कहे गये हैं, यथा-भरत और ऐवत । इसी तरह हैमवत और हिरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष जानने चाहिए ।
इस जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम दिशा में दो क्षेत्र कहे गये हैं जो अत्यन्त समान-विशेषता रहित हैं, यथा-पूर्व विदेह और अपर विदेह,
जम्बूद्विपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो कुरु (क्षेत्र) कहे गये जो परस्पर अत्यन्त समान हैं, यथा- देवकुरु और उत्तरकुरु । वहां दो विशाल महावृक्ष हैं जो परस्पर सर्वथा तुल्य, विशेषता रहित, विविधता रहित, लम्र्बा, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई, आकृति और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रम नहीं करते हैं, यथा-कूट शाल्मली और जंबू सुदर्शना । वहां महाऋद्धि वाले-यावत्-महान् सुखवाले और पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, यथावेणुदेव गरुड़ और अनाढ़िय । ये दोनों जम्बूद्वीप के अधिपति हैं ।
[८७] जम्बूद्वीप मे मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो वर्षधर पर्वत कहे गये हैं, परस्पर सर्वथा समान, विशेषता रहित, विविधता रहित, लम्बई-चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई, संस्थान
और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रम नहीं करते हैं, यथा-लघु हिमवान् और शिखरी । इसी प्रकार महाहिमवान् और रुक्मि । निषध और नीलवान् पर्वतों के सम्बन्ध में जानना ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में हैमवत और एरण्यवत क्षेत्र में दो गोल वैताढ्य पर्वत हैं जो अति समान, विशेषता और विविधता और विविधता रहित-यावत्-उनके नाम, यथा- शब्दापाती और विकटपाती । वहां महा ऋद्धि वाले-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, यथा-स्वाति और प्रभास ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में हरिवर्ष और स्म्यक्वर्ष में दो गोल