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स्थान-७/-/६८२
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धरणेन्द्र की सात सेनायें और सात सेनापति हैं, यथा-पैदल सेना यावत् गंधर्व सेना । रुद्रसेन-पैदल सेना का सेनापति । यावत्-आनन्द-रथ सेना का सेनापति है । नन्दन-नटसेना का सेनापति है और तेतली-गंधर्व सेना का सेनापति है।
नागकुमारेन्द्र भूतानन्द की सात सेनायें और सात सेनापति हैं । यथा-पैदल सेना यावत् गंधर्व सेना । दक्ष पैदल सेना का सेनापति । यावत्-नंदुत्तर-रथ सेना का सेनापति है । रती-नट सेना का सेनापति है और मानस गंधर्व सेना का सेनापति है । इस प्रकार घोष और महाघोष पर्यन्त सात सात सेनायें और सात सात सेनापति हैं ।
शक्रेन्द्र की सात सेनायें और सात सेनापति हैं । यथा-पैदल सेना यावत् गंधर्व सेना हरिणगमेषी-पैदल सेना का सेनापति यावत् माढर-स्थ सेना का सेनापति है । महास्वेत-नट सेना का सेनापति है और रत-गंधर्व सेना का सेनापति है । शेष पांचवें स्थान के अनुसार समझे इस प्रकार अच्युत देवलोक पर्यन्त सेना और सेनापतियों का वर्णन समझें ।
[६८३] चमरेन्द्र के द्रुम पैदल सेनापति के सात कच्छ (सैन्य समूह) है, यथा-प्रथम कच्छ यावत् सप्तम कच्छ । प्रथम कच्छ में ६४००० देव हैं । द्वितीय कच्छ में प्रथम कच्छ से दूने देव हैं । तृतीय कच्छ में द्वितीय कच्छ से दूने देव हैं । इस प्रकार सातवें कच्छ तक दूने-दूने देव कहें । इस प्रकार बलीन्द्र के भी-सात कच्छ हैं, विशेष यह कि-महद्रुम सेनापति के प्रथम कच्छ में साठ हजार देव हैं, शेष छः कच्छों में पूर्ववत् दूने-दूने देव कहें ।
इस प्रकार धरणेन्द्र के सात कच्छ हैं । विशेष सचना-रुद्रसेन सेनापति के प्रथम कच्छ में २८००० देव हैं शेष छः कच्छों में पूर्ववत् दुगने-दुगने देव कहें । इस प्रकार महाघोष पर्यन्त दूगुने देव कहें । विशेष सूचना-पैदल सेना के सेनापतियों के नाम पूर्ववत् कहें ।
शक्रेन्द्र के पैदल सेनापति हरिणगमेषी देव के सात कच्छ हैं । चमरेन्द्र के समान अच्युतेन्द्र पर्यन्त कच्छ और देवताओं का वर्णन समझे । पैदल सेनापतियों के नाम पूर्ववत् कहें । देवताओं की संख्या इन दो गाथाओं से जाननी चाहिये ।।
शक्रेन्द्र के पैदल सेनापति के प्रथम कच्छ में ८४०००देव हैं। ईशानेन्द्र के ८०.००० देव हैं । सनत्कुमार के ७२,००० देव हैं । माहेन्द्र के ७०,००० देव हैं । ब्रह्मेन्द्र के ६०,००० देव हैं । लांतकेन्द्र के ५०,००० देव हैं । महाशुकेन्द्र के ४०,००० देव हैं । सहस्त्रारेन्द्र के ३०,००० देव । आनतेन्द्र और आरणेन्द्र के २०,००० देव । प्राणतेन्द्र और अच्युतेन्द्र के २०,००० देव । प्रत्येक कच्छ में पूर्व कच्छ से दुगुने-दुगने देव कहें ।
[६८४] वचन विकल्प सात प्रकार के हैं, यथा-आलाप–अल्प भाषण, अनालापकुत्सित आलाप, उल्लाप-प्रश्नगर्भित वचन, अनुल्लाप-निंदित वचन, संलाप-परस्पर भाषण करना, प्रलाप-निरर्थक वचन, विप्रलाप-विरुद्ध वचन |
[६८५] विनय सात प्रकार का कहा गया है, यथा-ज्ञान विनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय, मन विनय, वचन विनय, काय विनय, लोकोपचार विनय ।
प्रशस्त मन विनय सात प्रकार का कहा गया है, यथा-अपापक शुभ चिंतन रूप विनय, असावद्य-चोरी आदि निंदित कर्म रहित, अक्रिय-कायिकादि क्रिया रहित, निरुपक्लेशशोकादि पीड़ा रहित, अनाश्रवकर-प्राणातिपातादि रहित, अक्षतकर-प्राणियों को पीड़ित न करने रूप, अभुताभिशंकन-अभयदान रूप । अप्रशस्त मन विनय सात प्रकार का कहा गया