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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
कोशी, मही ।
सिन्धु नदी में मिलने वाली पाँच नदियाँ शतगु, विवत्सा, विभासा, एरावती, चन्द्रभागा ।
जम्बूद्वीप के मेरु से उत्तर दिशा में रक्ता और रक्तवती महानदी में दस महानदियाँ मिलती हैं, यथा-कृष्णा, महाकृष्णा, नीला, महानीला, तीरा, महातीरा, इन्द्रा, इन्द्रषेणा, वारिषेणा, महाभोगा ।
[९०५] जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में दस राजधानियाँ हैं, यथा
[९०६] चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, हस्तिनापुर, कांपिल्यपुर, मिथिला, कोशाम्बि, राजगृह ।
[९०७] इन दस राजधानियों में दश राजा मुण्डित यावत्-प्रव्रजित हुए, यथा-भरत, सगर, मधव, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, महापद्म, हरिषेण, जयनाथ ।
[९०८] जम्बूद्वीप का मेरुपर्वत भूमि में दस सौ (एक हजार) योजन गहरा है । भूमि पर दस हजार योजन चौड़ा है । ऊपर से दस सौ (एक हजार) योजन चौड़ा है । दस-दस हजार (एकलाख) योजन के सम्पूर्ण मेरुपर्वत हैं ।
[९०९] जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के मध्यभाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर और नीचे के लघु प्रतर में आठ प्रदेश वाला रुचक है वहाँ से इन दश दिशाओं का उद्गम होता है । यथा-पूर्व, पूर्वदक्षिण, दक्षिण, दक्षिणपश्चिम, पश्चिम, पश्चिमोत्तर, उत्तर, उत्तरपूर्व, ऊर्ध्व, अधो । इन दस दिशाओं के दस नाम हैं, यथा
[९१०] ऐन्द्री, आग्नेयी, यमा, नैऋती, वारुणी, वायव्या, सोमा, ईशाना, विमला तमा [९११] लवण समुद्र के मध्य में दस हजार योजन का गोतीर्थ विरहित क्षेत्र है ।
लवण समुद्र के जल की शिखा दस हजार योजन की हैं । सभी (चार) महापाताल कलश दस-दश सहस्त्र (एक लाख योजन) के गहरे हैं । मूल में दस हजार योजन के चौड़े हैं । मध्य भाग में एक प्रदेश वाली श्रेणी में दस-दस हजार (एक लाख) योजन चौड़े हैं । कलशों के मुंह दस हजार योजन चौड़े हैं । उन महापाताल कलशों की ठीकरी वज्रमय है और दस सौ (एक हजार) योजन की सर्वत्र समान चौड़ी है ।
सभी (चार) लघुपाताल कलश दस सौ (एकहजार) योजन गहरे हैं । मूल में दस दशक (सौ) योजन चौड़े हैं । मध्यभाग में एक प्रदेश वाली श्रेणी में दश सौ (एक हजार) योजन चौड़े हैं । कलशों के मुंह दशदशक (सौ) योजन चौड़े हैं । उन लघुपाताल कलशों की ठीकरी वज्रमय है और दश योजन की सर्वत्र समान चौड़ी है ।
[९१२] धातकीखण्ड द्वीप के मेरु भूमि में दश सौ (एक हजार) योजन गहरे हैं । भूमि पर कुछ न्यून दश हजार योजन चौड़े हैं । ऊपर से दश सौ (एक हजार योजन) चौड़े हैं । पुष्करवर अर्धद्वीप के मेरु पर्वतों का प्रमाण भी इसी प्रकार का है ।
[९१३] सभी वृत वैताढ्य पर्वत दश सौ (एक हजार) योजन ऊँचे हैं । भूमि में दस सौ (एक हजार) गाऊ गहरे हैं । सर्वत्र समान पल्यंक संस्थान से संस्थित हैं और दश सौ (एक हजार) योजन चौड़े हैं ।
' [९१४] जम्बूद्वीप में दश क्षेत्र हैं, यथा-भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्वर्ष, पूर्वविदेह, अपरविदेह, देवकुरु, उत्तरकुरु ।