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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
मन्दर पर्वत का प्रथम काण्ड इकसठ हजार योजन ऊंचा कहा गया है ।
चन्द्रमंडल विमान एक योजन के इकसठ भागों से विभाजित करने पर पूरे छप्पन भाग प्रमाण सम-अंश कहा गया है । इसी प्रकार सूर्य भी एक योजन के इकसठ भागों से विभाजित करने पर पूरे अड़तालीस भाग प्रमाण सम-अंश कहा गया है ।
(समवाय-६२) [१४०] पंचसांवत्सरिक युग में बासठ पूर्णिमाएं और बासठ अमावस्याएं कही गई हैं। वासुपूज्य अर्हन् के बासठ गण और वासठ गणधर कहे गये हैं ।
शुक्लपक्ष में चन्द्रमा दिवस-दिवस (प्रतिदिन) बासठवें भाग प्रमाण एक-एक कला से बढ़ता और कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन इतना ही घटता है ।।
सौधर्म और ईशान इन दो कल्पों में पहले प्रस्तट में पहली आवलिका (श्रेणी) में एक एक दिशा में बासठ-बासठ विमानावास कहे गये हैं । सभी वैमानिक विमान-प्रस्तट प्रस्तटों की गणना से बासठ कहे गये हैं ।
(समवाय-६३ [१४१] कौशलिक ऋषभ अर्हन् तिरेसठ लाख पूर्व वर्ष तक महाराज के मध्य में रहकर अर्थात् राजा पद पर आसीन रहकर फिर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए ।
हरिवर्ष और रम्यक वर्ष में मनुष्य तिरेसठ रात-दिनों में पूर्ण यौवन को प्राप्त हो जाते हैं, अर्थात् उन्हें माता-पिता द्वारा पालन की अपेक्षा नहीं रहती ।
निषध पर्वत पर तिरेसठ सूर्योदय कहे गये हैं । इसी प्रकार नीलवन्त पर्वत पर भी तिरेसठ सूर्योदय कहे गये हैं ।
(समवाय-६४) [१४२] अष्टाष्टमिका भिक्षुप्रतिमा चौसठ रात-दिनों में, दो सौ अठासी भिक्षाओं से सूत्रानुसार, यथातथ्य, सम्यक् प्रकार काय से स्पर्श कर, पाल कर, शोधन कर, पार कर, कीर्तन कर, आज्ञा के अनुसार अनुपालन कर आराधित होती है ।
असुरकुमार देवों के चौसठ लाख आवास (भवन) कहे गये हैं । चमरराज के चौंसठ हजार सामानिक देव कहे गये हैं |
__ सभी दधिमुख पर्वत पल्य (ढोल) के आकार से अवस्थित है, नीचे ऊपर सर्वत्र समान विस्तार वाले हैं और चौंसठ हजार योजन ऊंचे हैं ।
सौधर्म, ईशान और ब्रह्मकल्प इन तीनों कल्पों में चौसठ लाख विमानावास हैं । सभी चातुरन्त चक्रवर्तीओं के चौसठ लड़ीवाला बहुमूल्य मुक्ता-मणियों का हार है ।
(समवाय-६५) [१४३] जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में पैंसठ सूर्यमण्डल कहे गये हैं ।
स्थविर मौर्यपुत्र पैंसठ वर्ष अगावास में रहकर मुंडित हो अगार त्याग कर अनगारिता में प्रव्रजित हुए ।