Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 264
________________ समवाय-प्र./२८७ २६३ [२८७] भगवान् कृषभदेव चार हजार उग्र, भोग राजन्य और क्षत्रिय जनों के परिवार के साथ दीक्षा ग्रहण करने के लिए घर से निकले थे । शेष उन्नीस तीर्थंकर एक-एक हजार पुरुषों के साथ निकले थे । २८८ सुमति देव नित्य भक्त के साथ, वासुपूज्य चतुर्थ भक्त के साथ, पार्श्व और मल्ली अष्टमभक्त के साथ और शेष बीस तीर्थंकर षष्ठभक्त के नियम के साथ दीक्षित हुए थे । [२८९] इन चौबीसों तीर्थंकरों को प्रथम वार भिक्षा देने वाले चौबीस महापुरुष हुए हैं । जैसे [२९०] १. श्रेयान्स, २. ब्रह्मदत्त, ३. सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. पद्म, ६. सोमदेव, ७. माहेन्द्र, ८. सोमदत्त । तथा [२९१] ९. पुष्य, १०. पुनर्वसु, ११. पूर्णनन्द, १२. सुनन्द, १३. जय, १४. विजय, १५. धर्मसिंह, १६. सुमित्र, १७. वर्ग सिंह । तथा . [२९२] १८. अपराजित, १९. विश्वसेन, २०. वृषभसेन, २१. दत्त, २२. वरदत्त, २१. धनदत्त और २४. बहुल, ये क्रम से चौबीस तीर्थंकरों के पहिली वार आहारदान करने वाले जानना चाहिए । [२९३] इन सभी विशुद्ध लेश्यावाले और जिनवरों की भक्ति से प्रेरित होकर अंजलिपुट से उस काल और उस समय में जिनवरेन्द्र तीर्थंकरों को आहार का प्रतिलाभ कराया ।। २९४] लोकनाथ भगवान् ऋषभदेव को एक वर्ष के बाद प्रथम भिक्षा प्राप्त हुई । शेष सब तीर्थंकरों को प्रथम भिक्षा दूसरे दिन प्राप्त हुई । [२९५] लोकनाथ कृषभदेव को प्रथम भिक्षा में इक्षुरस प्राप्त हुआ । शेष सभी तीर्थंकरों को प्रथम भिक्षा में अमृत-रस के समान परम-अन्न (खीर) प्राप्त हुआ । २९६] सभी तीर्थंकर जिनों ने जहाँ जहाँ प्रथम भिक्षा प्राप्त की, वहाँ वहाँ शरीरप्रमाण ऊंची वसुधारा की वर्षा हुई । [२९७] इन चौवीस तीर्थंकरों के चौवीस चैत्यवृक्ष थे । जैसे [२९८] १. न्यग्रोध (वट) २. सप्तपर्ण, ३. शाल, ४. प्रियाल, ५. प्रियंगु, ६. छत्राह, ७. शिरीष, ८. नागवृक्ष, ९. साली, १०. पिलंखुवृक्ष । तथा [२९९] ११. तिन्दुक, १२. पाटल, १३. जम्बु, १४. अश्वत्थ (पीपल), १५. दधिपर्ण, १६. नन्दीवृक्ष, १७. तिलक, १८. आम्रवृक्ष, १९. अशोक । तथा ३००] २०. चम्पक, २१. बकुल, २२. वेत्रसवृक्ष, २३. धातकीवृक्ष और २४. वर्धमान का शालवृक्ष । ये चौवीस तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष हैं । [३०१]वर्धमान भगवान् का चैत्यवृक्ष बत्तीस धनुष ऊंचा था, वह नित्य-ऋतुक या अर्थात् प्रत्येक ऋतु में उसमें पत्र-पुष्प आदि समृद्धि विद्यमान रहती थी । अशोकवृक्ष सालवृक्ष से आच्छन्न (ढंका हुआ) था । [३०२] ऋषभ जिन का चैत्यवृक्ष तीन गव्यूति (कोश) ऊंचा था । शेष तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष उनके शरीर की ऊंचाई से बारह गुणे ऊंचे थे । ३०३] जिनवरों के ये सभी चैत्यवृक्ष छत्र-युक्त, ध्वजा-पताका-सहित, वेदिका-सहित

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