Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 272
________________ समवाय- प्र. / ३८३ २७१ है, अतः यह श्रुतसमास है, श्रुत का समुदाय रूप वर्णन करने से यह 'श्रुतस्कन्ध' है, समस्त जीवादि पदार्थों का समुदायरूप कथन करने से यह 'समवाय' कहलाता है, एक दो तीन आदि की संख्या के रूप से संख्यान का वर्णन करने से यह 'संख्या' नाम से भी कहा जाता है । इसमें आचारादि अंगों के समान श्रुतस्कन्ध आदि का विभाग न होने से इसे 'अध्ययन' भी कहते हैं । इस प्रकार श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी को लक्ष्य करके कहते हैं कि इस अंग को भगवान् महावीर के समीप जैसा मैंने सुना, उसी प्रकार से मैंने तुम्हें कहा है । समवाय प्रकीर्णक का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण ४ समवाय अंगसूत्र- ४ हिन्दी अनुवाद पूर्ण - आगमसूत्र हिन्दी - अनुवाद भाग- २ समाप्त

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