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समवाय- प्र. / ३२८
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[३२८] उनमें वासुदेवों के नाम इस प्रकार हैं- १. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयम्भू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुषसिंह, ६. पुरुषपुंडरीक, ७. दत्त, ८. नारायण (लक्ष्मण) और ९. कृष्ण ।
बलदेवों के नाम इस प्रकार हैं-१ अचल, २ विजय, ३ भद्र, ४ सुप्रभ, ५ सुदर्शन, ६ आनन्द, ७ नन्दन, ८ पद्म और अन्तिम बलदेव राम ।
[३२९] इन नव बलदेवों और वासुदेवों के पूर्व भव के नौ नाम इस प्रकार थे[३३०] १ विश्वभूति, २ पर्वत, ३ धनदत्त, ४ समुद्रदत्त, ५ ऋषिपाल, ६ प्रियमित्र, ७ ललितमित्र, ८ पुनर्वसु ९ और गंगदत्त । ये वासुदेवों के पूर्व भव में नाम थे । [३३१] इससे आगे यथाक्रम से बलदेवों के नाम कहूंगा ।
[३३२] १ विश्वनन्दी, २ सुबन्धु, ३ सागरदत्त, ४ अशोक ५ ललित, ६ वाराह, ७ धर्मसेन, ८ अपराजित, और ९ राजललित ।
[३३३] इस नव बलदेवों और वासुदेवों के पूर्वभव में नौ धर्माचार्य थे
[३३४] १ संभूत, २ सुभद्र, ३ सुदर्शन, ४ श्रेयान्स, ५ कृष्ण, ६ गंगदत्त, ७ सागर, ८ समुद्र और ९ द्रुमसेन ।
[३३५] ये नवों ही आचार्य कीर्तिपुरुष वासुदेवों के पूर्व भव में धर्माचार्य थे । जहाँ वासुदेवों ने पूर्व भव में निदान किया था उन नगरों के नाम आगे कहते हैं
[३३६] इन नवों वासुदेवों की पूर्व भव में नौ निदान - भूमियाँ थीं । ( जहाँ पर उन्होंने निदान ( नियाणा) किया था ।) जैसे
[३३७] १ मथुरा २ कनकवस्तु ३ श्रावस्ती, ४ पोदनपुर, ५ राजगृह, ६ काकन्दी, ७ कौशाम्बी, ८ मिथिलापुरी और ९ हस्तिनापुर ।
[३३८] इन नवीं वासुदेवों के निदान करने के नौ कारण थे
[३३९] १ गावी (गाय), २ यूपस्तम्भ ३ संग्राम, ४ स्त्री, ६ युद्ध में पराजय, ६ स्त्रीअनुराग, ७ गोष्ठी, ८ पर ऋद्धि और ९ मातृका (माता) ।
[३४०] इन नवों वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु (प्रतिवासुदेव) थे । जैसे
[३४१] १ अश्वग्रीव, २ तारक, ३ मेरक, ४ मधु-कैटभ, ५ निशुम्भ ६ बलि, ७ प्रभराज (प्रह्लाद), ८ रावण और ९ जरासन्ध |
[ ३४२] ये कीर्तिपुरुष वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु थे । ये सभी चक्रयोधी थे और सभी अपने ही चक्रों से युद्ध में मारे गये ।
[३४३] उक्त नौ वासुदेवों में से एक मर कर सातवीं पृथ्वी में, पांच वासुदेव छठी पृथ्वी में, एक पांचवीं में, एक चौथी में और कृष्ण तीसरी पृथ्वी में गये ।
[ ३४४ ] सभी राम (बलदेव) अनिदानकृत होते हैं और सभी वासुदेव पूर्व भव में निदान करते हैं । सभी राम मरण कर ऊर्ध्वगामी होते हैं और सभी वासुदेव अधोगामी होते हैं ।
[३४५] आठ राम (बलदेव) अन्तकृत् अर्थात् कर्मों का क्षय करके संसार का अन्त