________________
समवाय प्र./१८०
२३५
प्रकीर्णक समवाय
[१८०] चन्द्रप्रभ अर्हत् डेढ़ सौ धनुष उंचे थे । आरण कल्प में डेढ़ सौ विमानावास कहे गये हैं । अच्युत कल्प भी डेढ़ सौ विमानावास वाला कहा गया है । [१८१] सुपार्श्व अर्हत् दो सौ धनुष ऊंचे थे
।
सभी महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वत दो-दो सौ योजन उंचे हैं और वे सभी दोदो गव्यूति उद्वेध वाले हैं । इस जम्बूद्वीप में दो सौ कांचनक पर्वत कहे गये हैं । [१८२] पद्मप्रभ अर्हत् अढ़ाई सौ धनुष उंचे थे ।
असुरकुमार देवों के प्रासादावतंसक अढ़ाई सौ योजन उंचे कहे गये हैं । [१८३] सुमति अर्हत् तीन सौ धनुष ऊंचे थे । अरिष्टनेमि अर्हन् तीनसौ वर्ष कुमारखास में रह कर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए ।
वैमानिक देवों के विमान प्राकार तीन-तीन सौ योजन उंचे हैं ।
श्रमण भगवान् महावीर के संघ में तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे ।
पाँच सौ धनुष की अवगाहनावाले चरमशरीरी सिद्धि को प्राप्त पुरुषों (सिद्धों) के जीवप्रदेशों की अवगाहना कुछ अधिक तीन सौ धनुष की होती है ।
[१८४] पुरुषादानीय पार्श्व अर्हन् के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वियों की सम्पदा थी । अभिनन्दन अर्हन् साढ़े तीन सौ धनुष ऊंचे थे ।
[१८५] संभव अर्हत् चार सौ धनुष ऊंचे थे ।
सभी निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत चार-चार सौ योजन ऊंचे तथा वे चार-चार सौ गव्यूति उद्वेध ( गहराई ) वाले हैं । सभी वक्षार पर्वत निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों के समीप चार-चार सौ योजन ऊंचे और चार-चार सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गये हैं । आनत और प्राणत इन दो कल्पों में दोनों के मिलाकर चार सौ विमान कहे गये हैं । श्रमण भगवान् महावीर के चार सौ अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा थी वेवादी देव, मनुष्य और असुरों में से किसी से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे । [१८६] अजित अर्हत् साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे । चातुरन्तचक्रवर्ती सगरराजा साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे ।
1
[१८७ ] सभी वक्षार पर्वत सीता-सीतोदा महानदियों के और मन्दर पर्वत के समीप पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गये हैं । सभी वर्षधर कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन विष्कम्भ वाले कहे गये हैं । कौलिक ऋषभ अर्हत् पाँच सौ धनुष ऊंचे थे । चातुरन्तचक्रवर्ती राजा भरत पाँच सौ धनुष ऊंचे थे ।
सौमनस, गन्धमादन, विद्युत्प्रभ और मालवन्त ये चारों वक्षार पर्वत मन्दर पर्वत के समीप पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गव्यूति उद्वेधवाले हैं । हरि और हरिस्सह कूट को छोड़ कर शेष सभी वक्षार पर्वतकूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँचपाँच सौ योजन आयाम - विष्कम्भ वाले कहे गये हैं । बलकूट को छोड़ कर सभी नन्दनवन के कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन आयाम - विष्कम्भ वाले कहे गये हैं ।