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समवाय- प्र. / २२७
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है । इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तुस्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है । यह ग्यारहवें विपाक सूत्र अंग का परिचय है । [२२८]यह दृष्टिवाद अंग क्या है इसमें क्या वर्णन है ?
दृष्टिवाद अंग में सर्व भावों की प्ररूपणा की जाती । वह संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है । जैसे— परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका ।
परिकर्म क्या है ? परकिर्म सात प्रकार का कहा गया है । जैसे— सिद्धश्रेणिकापरिकर्म, मनुष्यश्रेणिका परिकर्म; पृष्टश्रेणिका परिकर्म, अवगाहनश्रेणिका परिकर्म, उपसंपद्य श्रेणिका परिकर्म, विप्रजहत श्रेणिका परिकर्म और च्युताच्युतश्रेणिका - परिकर्म ।
सिद्धश्रेणिका परिकर्म क्या है ? सिद्धश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है । जैसे -मातृकापद, एकार्थकपद, अर्थपद, पाठ, आकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूतप्रतिग्रह, संसार - प्रतिग्रह, नन्द्यावर्त, और सिद्धबद्ध । यह सब सिद्ध श्रेणिका परिकर्म हैं ।
मनुष्य श्रेणिका - परिकर्म क्या है ? मनुष्यश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है । जैसे - मातृकापद से लेकर वे ही पूर्वोक्त नन्द्यावर्त तक और मनुष्यबद्ध । यह सब मनुष्य श्रेणिका परिकर्म है ।
पृष्ठश्रेणिका परिकर्म से लेकर शेष परिकर्म ग्यारह - ग्यारह प्रकार के कहे गये हैं । पूर्वोक्त सातों परिकर्म स्वसामयिक (जैनमतानुसारी) हैं, सात आजीविकमतानुसारी हैं, छह परिकर्म चतुष्कन वालों के मतानुसारी हैं और सात त्रैराशिक मतानुसारी हैं । इस प्रकार ये सातों परिकर्म पूर्वापर भेदों की अपेक्षा तिरासी होते हैं, यह सब परिकर्म हैं ।
सूत्र का स्वरूप क्या है ? सूत्र अठासी होते हैं, ऐसा कहा गया है । जैसे- १ ऋजुक, २ परिणतापरिणत, ३ बहुभंगिक, ४ विजयचर्या ५ अनन्तर, ६ परम्पर, ७ समान ( समानस), ८ संजूह - संयूथ, ९ भिन्न, १० अहाच्चय, ११ सौवस्तिक, १२ नन्द्यावर्त, १३ बहुल, १४ पृष्टापृष्ट १५ व्यावृत्त, १६ एवंभूत, १७ द्व्यावर्त्त, १८ वर्तमानात्मक, १९ समभिरूढ, २० सर्वतोभद्र, २१ पणाम (पण्णास) और २२ दुष्प्रतिग्रह । ये बाईस सूत्र स्वसमयसूत्र परिपाटी से छिन्नच्छेद - नयिक हैं । ये ही बाईस सूत्र आजीविकसूत्रपरिपाटी से अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं । ये ही बाईस सूत्र त्रैराशिकसूत्रपरिपाटी से त्रिकनयिक हैं और ये ही बाईस सूत्र स्वसमय सूत्रपरिपाटी से चतुष्कनयिक हैं । इस प्रकार ये सब पूर्वापर भेद मिलकर अठासी सूत्र होते हैं, ऐसा कहा गया है । यह सूत्र नाम का दूसरा भेद है ।
यह पूर्वगत क्या हैं - इसमें क्या वर्णन है ?
पूर्वगत चौदह प्रकार के कहे गये हैं । जैसे- उत्पादपूर्व, अग्रायणीयपूर्व, वीर्यप्रवादपूर्व, अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवादपूर्व, सत्यप्रवादपूर्व, आत्मप्रवादपूर्व, कर्मप्रवादपूर्व, प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, विद्यानुप्रवादपूर्व, अबन्ध्यपूर्व, प्राणायुपूर्व, क्रियाविशाल पूर्व और लोकबिन्दुसारपूर्व ।
उत्पादपूर्व की दश वस्तु (अधिकार) हैं और चार चूलिकावस्तु है । अग्रायणीय पूर्व की चौदह वस्तु और बारह चूलिकावस्तु हैं । वीर्यप्रवादपूर्व की आठ वस्तु और आठ चूलिकावस्तु है । अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की अठारह वस्तु और दश चूलिकावस्तु हैं । ज्ञानप्रवाद पूर्व की