Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 261
________________ २६० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद के छहों संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता है । वे असंहननी होते हैं, क्योंकि उनके शरीर में हड्डी नहीं होती है, नहीं शिराएं होती हैं, और नहीं स्नायु होती हैं । जो पुगद्ल इष्ट, कान्त, प्रिय, [आदेय, शुभ] मनोज्ञ, मनाम, और मनोभिराम होते हैं, उनसे उनका शरीर संहनन-रहित ही परिणत होता है । इस प्रकार नागकुमारों से लेकर स्ननितकुमार देवों तक जानना चाहिए । अर्थात् उनके कोई संहनन नहीं होता । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव किस संहनन वाले कहे गये हैं ? गौतम पृथ्वीकायिक जीव सेवासिंहनन वाले कहे गये हैं । इसी प्रकार अप्कायिक से लेकर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक तक के सब जीव सेवार्त संहननवाले होते हैं । गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों प्रकार के संहननवाले होते हैं । सम्मूर्छिम मनुष्य सेवार्त संहननवाले होते हैं । गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों प्रकार के संहननवाले होते हैं । जिस प्रकार असुरकुमार देव संहनन-रहित हैं, उसी प्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी संहनन-रहित होते हैं । - भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! संस्थान छह प्रकार का है- समचतुरस्त्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, सादि या स्वातिसंस्थान, वामनसंस्थान, कुब्जकसंस्थान, हुंडकसंस्थान । ___ भगवन् ! नारकी जीव किस संस्थानवाले कहे गये हैं ? गौतम ! नारक जीव हूंडकसंस्थान वाले कहे गये हैं । भगवन् ! असुरकुमार देव किस संस्थानवाले होते हैं ? गौतम ! असुरकुमार देव समचतुरस्त्र संस्थान वाले होते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देव समचतुरस्त्र संस्थान वाले होते हैं । ___पृथ्वीकायिक जीव मसूरसंस्थान वाले कहे गये हैं । अप्कायिक जीव स्तिबुक (बिन्दु) संस्थानवाले कहे गये हैं । तेजस्कायिक जीव सूचीकलाप संस्थानवाले (सुइयों के पुंज के समान आकार वाले) कहे गये हैं । वायुकायिक जीव पताका-(ध्वजा-) संस्थानवाले कहे गये हैं । वनस्पतिकायिक जीव नाना प्रकार के संस्थानवाले कहे गये हैं । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यंच जीव हंडक संस्थानवाले और गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों संस्थानवाले कहे गये हैं । सम्मूर्छिम मनुष्य हुंडक संस्थानवाले तथा गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों संस्थानवाले कहे गये हैं । जिस प्रकार असुरकुमार देव समचतुरस्त्र संस्थान वाले होते हैं, उसी प्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी समचुतरस्त्र संस्थानवाले होते हैं । २५४] भगवन् ! वेद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! वेद तीन हैं-स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद . __भगवन् ! नारक जीव क्या स्त्री वेदवाले हैं, अथवा नपुंसक वेदवाले हैं ? गौतम ! नारक जीव न स्त्री वेदवाले हैं, न पुरुषवेद वाले हैं, किन्तु नपुंसक वेदवाले होते हैं । भगवन् ! असुरकुमार देव स्त्रीवेदवाले हैं, पुरुषवेद वाले हैं, अथवा नपुंसक वेदवाले हैं ? गौतम ! असुरकुमार देव स्त्री वेदवाले हैं, पुरुष वेद वाले हैं, किन्तु नपुंसक वेदवाले नहीं होते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमार देवों तक जानना चाहिए । पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय,

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