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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
सौधर्म और ईशान इन दोनों कल्पों में सभी विमान पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे है । [१८८] सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में विमान छह सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं । क्षुल्लक हिमवन्त कूट के उपरिम चरमान्त से क्षुल्लक हिमवन्त वर्षधर पर्वत का समधरणीतल छह सौ योजन अन्तर वाला है । इसी प्रकार शिखरी कूट का भी अन्तर जानना चाहिए ।
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पार्श्व अर्हत् के छह सौ अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा थी जो देव, मनुष्य और असुरों में से किसी से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे । अभिचन्द्र कुलकर छह सौ धनुष ऊंचे थे । वासुपूज्य अर्हत् छह सौ पुरुषों के साथ मुंडित होकर अगा से अनगारिता प्रव्रजित हुए थे ।
[१८९] ब्रह्म और लान्तक इन दो कल्पों में विमान सात-सात सौ योजन ऊंचे है । श्रमण भगवान् महावीर के संघ में सात सौ वैक्रिय लब्धिधारी साधु थे । अरिष्टनेमि अर्हत कुछ कम सात सौ वर्ष केवलिपर्याय में रह कर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
महाहिमवन्त कूट के ऊपरी चरमान्त भाग से महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत का समधरणी तल सात सौ योजन अन्तर वाला कहा गया है ।
इसी प्रकार रुक्मी कूट का भी अन्तर जानना चाहिए ।
[१९०] महाशुक्र और सहस्त्रार इन दो कल्पों में विमान आठ सौ योजन ऊंचे है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम कांड के मध्यवर्ती आठ सौ योजनों में वानव्यवहार भौयक देवों के विहार कहे गये हैं ।
श्रमण भगवान् महावीर के कल्याणमय गति और स्थिति वाले तथा भविष्य में मुक्ति प्राप्त करने वाले अनुत्तरीपपातिक मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा आठ सौ थी ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से आठ सौ योजन की ऊंचाई पर सूर्य परिभ्रमण करता है ।
अरिष्टनेमि अर्हत् के अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा आठ सौ थी, जो देव, मनुष्य और असुरों में से किसी से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे ।
[१९१] आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चार कल्पों में विमान नौ-नौ सौ योजन ऊंचे हैं ।
निषेध कूट के उपरम शिखरतल से निषध वर्षधर पर्वत का सम धरणीतल नौ सौ योजन अन्तरवाला है । इसी प्रकार नीलवन्त कूट का भी अन्तर जानना चाहिए । विमलवाहन कुलकर नौ सौ धनुष ऊंचे थे ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसमरणीय भूमि भाग से नौ सौ योजन की सबसे ऊपरी ऊंचाई पर तारा मंडल संचार करता है ।
निषेध वर्षधर पर्वत के उपरिम शिखरतल से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम कांड के बहुमध्य देश भाग का अन्तर नौ सौ योजन है । इसी प्रकार नीलवन्त पर्वत का भी अन्तर नौ सौ योजन का समझना चाहिए । वर्षधर पर्वतों में निषध पर्वत तीसरा और नीलवन्त पर्वत चौथा है । दोनों का अन्तर समान है ।
[१९२] सभी ग्रैयेवक विमान १००० योजन ऊंचे कहे गये हैं ।