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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
शान्ति अन् पचहत्तर हजार वर्ष अगारवास में रह कर मुंडित हो अगार से अनगारिता
में प्रव्रजित हुए ।
समवाय - ७५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् अनुवाद पूर्ण
समवाय-७६
[१५४] विद्युत्कुमार देवों के छिहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गये हैं । [१५५] इसी प्रकार द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, स्तनितकुमार, और अग्निकुमार, इन दक्षिण-उत्तर दोनों युगलवाले छहों देवों के भी छिहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गये हैं ।
समवाय-७७
[१५६] चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा सतहत्तर लाख पूर्व कोटि वर्ष कुमार अवस्था में रह कर महाराजपद को प्राप्त हुए राजा हुए
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अंगवंश की परम्परा में उत्पन्न हुए सतहत्तर राजा मुंडित हो अगार से अनगारिता में हुए
गर्दतोय और तुषित लोकान्तिक देवों का परिवार सतहत्तर हजार देवोंवाला है । प्रत्येक मुहूर्त में लवों की गणना से सतहत्तर लव कहे गये हैं ।
प्रव्रजित
समवाय-७८
[१५७] देवेन्द्र देवराज शक्र का वैश्रमण नामक चौथा लोकपाल सुपर्णकुमारों और द्वीपकुमारों के अठहत्तर लाख आवासों (भवनों ) का आधिपत्य, अग्रस्वामित्व, स्वामित्व, भर्तृत्व महाराजत्व, सेनानायकत्व करता और उनका शासन एवं प्रतिपालन करता है ।
स्थविर अकम्पित अठहत्तर वर्ष की सर्व आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए ।
उत्तरायण से लौटता हुआ सूर्य प्रथम मंडल से उनचालीसवें मण्डल तक एक मुहूर्त के इसलिए अठहत्तर भाग प्रमाण दिन को कम करके और रजनी क्षेत्र (रात्रि) को बढ़ा कर संचार करता है । इसी प्रकार दक्षिणायन से लौटता हुआ भी रात्रि और दिन के प्रमाण को घटाता और बढ़ाता हुआ संचार करता है ।
समवाय-७९
[१५८] वडवामुख नामक महापातालकलश के अधस्तन चरमान्त भाग से इस रत्नप्रभा पृथ्वी का निचला चरमान्त भाग उन्यासी हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है । इसी प्रकार केतुक, यूपक और ईश्वर नामक महापातलों का अन्तर भी जानना चाहिए |
छठी पृथ्वी के बहुमध्यदेशभाग से छठे धनोदधिवात का अधस्तल चरमान्त भाग उन्यासी हजार योजन के अन्तर व्यवधान वाला कहा गया है ।
जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कुछ अधिक उन्यासी हजार योजन है ।