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समवाय-६५/१४३
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सौधर्मावतंसक विमान की एक-एक दिशा में पैंसठ-पैंसठ भवन कहे गये हैं । समवाय-६५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-६६) [१४४] दक्षिणार्ध मानुष क्षेत्र की छियासठ चन्द्र प्रकाशित करते थे, प्रकाशित करते हैं और प्रकाशित करेंगे । इसी प्रकार छियासठ सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे । उत्तरार्ध मानुष क्षेत्र को छियासठ चन्द्र प्रकाशित करते थे, प्रकाशित करते हैं और प्रकाशित करेंगे । इसी प्रकार छियासठ सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे ।
श्रेयांस अर्हत् के छयासठ गण और छयासठ गणधर थे । आभिनिबोधिक ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति छयासठ सागरोपम कही गई है ।
(समवाय-६७) [१४५] पंचसांवत्सरिक युग में नक्षत्र मास से गिरने पर सड़सठ नक्षत्रमास हैं ।
हैमवत और एरवत क्षेत्र की भुजाएं सड़सठ-सड़सठ सौ पचपन योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से तीन भाग प्रमाण कही गई हैं ।
मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्तभाग से गौतम द्वीप के पूर्वी चस्मान्तभाग का सड़सठ हजार योजन विना किसी व्यवधान के अन्तर कहा गया है ।
सभी नक्षत्रों का सीमा-विष्कस्भ [दिन-रात में चन्द्र-द्वारा भोगने योग्य क्षेत्र] सड़सठ भागो से विभाजित करने पर सम अंशवाला कहा गया है ।
(समवाय-६८) [१४६] धातकीखण्ड द्वीप में अड़सठ चक्रवर्तियों के अड़सठ विजय और अड़सठ राजधानियां कही गई हैं । उत्कृष्ट पद की अपेक्षा धातकीखण्ड में अड़सठ अरहंत उत्पन्न होते रहे हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए ।
पुष्करवर द्वीपार्ध में अड़सठ विजय और अड़सठ राजधानियां कही गई हैं । वहाँ उत्कृष्ट रूप से अड़सठ अरहन्त उत्पन्न होते रहे हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए । विमलनाथ अर्हन् के संघ में श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमणसम्पदा अड़सठ हजार थी ।
(समवाय-६९) [१४७] समयक्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र या अढाई द्वीप) में मन्दर पर्वत को छोड़कर उनहत्तर वर्ष और वर्षधर पर्वत कहे गये हैं । जैसे—पैंतीस वर्ष (क्षेत्र), तीस वर्षधर (पर्वत) और चार इषुकार पर्वत ।
मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से गौतम द्वीप का पश्चिम चरमान्त भाग उनहत्तर हजार योजन अन्तरवाला विना किसी व्यवधान के कहा गया है । 2015