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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
पुद्गल के परिणाम (धर्म) बाईस प्रकार के कहे गये । जैसे— कृष्णवर्णपरिणाम, नीलवर्णपरिणाम, लोहितवर्णपरिणाम, हारिद्रवर्णपरिणाम, शुक्लवर्णपरिणाम, सुरभिगन्धपरिणाम, दुरभिगन्धपरिणाम, तित्करसपरिणाम, कटुकरसपरिणाम, कषायरसपरिणाम, आम्लरसपरिणाम, मधुररसपरिणा, कर्कशस्पर्शपरिणाम, मृदुस्पर्शपरिणाम, गुरुस्पर्शपरिणाम, लघुस्पर्शपरिणाम, शीतस्पर्शपरिणाम, उष्णस्पर्शपरिणाम, स्निग्धस्पर्शपरिणाम, रूक्षस्पर्शपरिणाम, अगुरुलघुस्पर्शपरिणाम और गुरुलघुस्पर्शपरिणाम ।
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इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई है । छठी तमः प्रभा पृथ्वी में नारकियों की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है । अधस्तन सातवीं तमस्तमा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई है ।
सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बाईस पल्योपम है । अच्युत कल्प में देवों की [ उत्कृष्ट] स्थिति बाईस सागरोपम है । अधस्तन - अधस्तन ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम है । वहां जो देव महित, विसूहित (विश्रुत), विमल, प्रभास, वनमाल और अच्युतावतंसक नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम है । वे देव ग्यारह मासों के बाद आनप्राण या उच्छ्वास- निःश्वास लेते हैं । उन देवों के बाईस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भवसिद्धिक जीव बाईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ।
समवाय - २२ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय- २३
[ ५३ ] सूत्रकृताङ्ग के तेईस अध्ययन हैं । समय, वैतालिक, उपसर्गपरिज्ञा, स्त्रीपरिज्ञा, नरकविभक्ति, महावीरस्तुति, कुशीलपरिभाषित, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवसरण, याथातथ्य ग्रन्थ, यमतीत, गाथा, पुण्डरीक, क्रियास्थान, आहारपरिज्ञा, अप्रत्याख्यानक्रिया, अनगारश्रुत, आर्द्रा, नालन्दी ।
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में, इसी भारतवर्ष में इसी अवसर्पिणी में तेईस तीर्थंकर जिनों को सूर्योदय के मुहूर्त में केवल वर - ज्ञान और केवल वर - दर्शन उत्पन्न हुए । जम्बूद्वीपनामक इसी द्वीप में इसी अवसर्पिणीकाल के तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में ग्यारह अंगश्रुत के धारी थे । जैसे—अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति यावत् पार्श्वनाथ, महावीर । कौशलिक ऋषभ अर्हत् चतुर्दशपूर्वी थे । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में इस अवसर्पिणी काल के तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में मांडलिक राजा थे । जैसे—अजित, संभव, अभिनन्दन यावत् पार्श्वनाथ तथा वर्धमान । कौलिक ऋषभ अर्हत् पूर्वभव में चक्रवर्ती थे ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति तेईस पल्योपम कही गई है । अधस्तन सातवीं पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति तेईस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति तेईस पल्योपम कही गई है ।
सौधर्म ईशान कल्प में कितनेक देवों की स्थिति तेईस पल्योपम है । अधस्तन