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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में अभिजित् नक्षत्र को छोड़कर शेष नक्षत्रों के द्वारा मास आदि का व्यवहार प्रवर्तता है । नक्षत्र मास सत्ताईस दिन-रात की प्रधानता वाला कहा गया है। सौधर्म ईशान कल्पों में उनके विमानों की पृथ्वी सत्ताईस सौ योजन मोटी कही गई है । वेदक सम्यक्त्व के बन्ध रहित जीव के मोहनीय कर्म को सत्ताईस प्रकृतियों की सत्ता कही गई है। श्रावण सुदी सप्तमी के दिन सूर्य सत्ताईस अंगुल की पौरुषी छाया करके दिवस क्षेत्र (सूर्य से प्रकाशित आकाश) की ओर लौटता हुआ और रजनी क्षेत्र ( प्रकाश की हानि करता और अन्धकार को) बढ़ता हुआ संचार करता है ।
इस रत्नप्रक्षा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति सत्ताईस पल्योपम की है । अधस्तन सप्तम महातमः प्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति सत्ताईस पल्योपम की है ।
सौधर्म - ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति सत्ताईस पल्योपम की है । मध्यमउपरिम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है । जो देव मध्यम ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है । ये देव साढ़े तेरह मासों के बाद आन-प्राण अर्थात् उच्छ्वास - निःश्वास लेते हैं । उन देवों को सत्ताईस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती I
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सत्ताईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ।
समवाय- २७ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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समवाय- २८
[६२] आचारप्रकल्प अट्ठाईस प्रकार का है । मासिकी आरोपणा, सपंचरात्रिमासिकी आरोपणा, सदशरात्रिमासिकी आरोपणा, सपंचदशरात्रिमासिकी आरोपणा, सविशतिरात्रिकोमासिकी आरोपण, सपंचविशतिरात्रिमासिकी आरोपणा इसी प्रकार छ द्विमासिकी आरोपणा, ६ त्रिमासिकी आरोपणा, ६ चतुर्मासिकी आरोपणा, उपधातिका आरोपणा, अनुपधातिका आरोपण, कृत्स्ना आरोपणा अकृत्स्ना आरोपणा, यह अट्ठाईस प्रकार का आचारप्रकल्प है । आचरित दोष की शुद्धि न हो जावे तब तक यह - आचारणीय है ।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता कही गई है । जैसे— सम्यक्त्ववेदनीय, मिथ्यात्ववेदनीय, सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय, सोलहकषाय और नौ नोकषाय ।
आभिनिबोधिकज्ञान अट्ठाईस प्रकार का कहा गया है । जैसे— श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रिय- अर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय- अर्थावग्रह, जिह्वेन्द्रिय- अर्थावग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय- अर्थावग्रह, नोइन्द्रिय- अर्थावग्रह, श्रोत्रेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, ध्राणेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, जिह्वेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, श्रोत्रेन्द्रिय-ईहा, चक्षुरिन्द्रिय-ईहा, धोणेन्द्रिय-ईहा, जिह्वेन्द्रिय-ईहा, स्पर्शनेन्द्रिय-ईहा, नोइन्द्रिय-ईहा, श्रोत्रेन्द्रिय- अवाय, चक्षुरिन्द्रिय अवाय, घ्राणेन्द्रिय अवाय, जिह्वेन्द्रिय अवाय, स्पर्शनेन्द्रिय अवाय, नोइन्द्रिय अवाय, श्रोत्रेन्द्रिय धारणा, चक्षुरिन्द्रिय धारणा,