Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 206
________________ समवाय- २५/५९ मध्यम सौधर्म - ईशान कल्प में कितनेक देवों की स्थिति पच्चीस पल्योपम है अधस्तनग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति पच्चीस सागरोपम है । जो देव अधस्तन - उपरिमग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागरोपम है । वे देव साढ़े बारह मासों के बाद आन-प्राण या श्वासोच्छ्वास लेते हैं । उन देवों के पच्चीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो पच्चीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय- २५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण २०५ समवाय- २६ [६०] दशासूत्र (दशाश्रुतस्कन्ध), (बृहत् ) कल्पसूत्र और व्यवहारसूत्र के छब्बीस उद्देशनकाल कहे गये हैं । जैसे—— दशासूत्र के दश, कल्पसूत्र के छह और व्यवहारसूत्र के दश । अभव्यसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म के छब्बीस कर्माश ( प्रकृतियाँ) सत्ता में कहे गये हैं । जैसे— मिथ्यात्व मोहनीय, सोलह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुष वेद, नपुंसकवेद, हास्य, अरति, रति, भय, शोक और जुगुप्सा । I इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति छब्बीस पल्योपम कही गई है । अधस्तन सातवीं महातमः प्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति छब्बीस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति छब्बीस पल्योपम कही गई है । सौधर्म - ईशान कल्प में रहनेवाले कितनेक देवों की स्थिति छब्बीस पल्योपम है । मध्यम- मध्यम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति छब्बीस सागरोपम है । जो देव मध्यमअधस्तनग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति छब्बीस सागरोपम है । वे देव तेरह मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास - निःश्वास लेते हैं । उन देवों के छब्बीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो छब्बीस भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्वदुःखों का अन्त करेंगे । समवाय- २६ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय- २७ अनगार-निर्ग्रन्थ साधुओं के सत्ताईस गुण हैं । जैसे— प्राणातिपात विरमण, मृषावादविरमण, अदत्तादान - विरमण, मैथुन- विरमण, परिग्रह - विरमण, श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह, चक्षुरिन्द्रिय- निग्रह, ध्राणेन्द्रिय-निग्रह, जिह्वेन्द्रिय - निग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय - निग्रह, क्रोधविवेक, मानविवेक, मायाविवेक, लोभविवेक, भावसत्य, करणसत्य, योगसत्य, क्षमा, विरागता, मनःसमाहरणता, वचनसमाहरणता, कायसमाहरणता, ज्ञानसम्पन्नता, दर्शनसम्पन्नता, चारित्रसम्पन्नता, वेदनातिसहनता और मारणान्तिकातिसहनता ।

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