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समवाय- ४२/११८
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नामकर्म बयालीस प्रकार का कहा गया है । जैसे— गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, शरीराङ्गोपाङ्गनाम, शरीरबन्धननाम, शड़ीरसंघातननाम, संहनननाम, संस्थाननाम, वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, पराघातनाम, आनुपूर्वीनाम, उच्छ्वासनाम, आतपनाम, उद्योतनाम, विहायोगतिनाम, त्रसनाम, स्थावरनाम, सूक्ष्मनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, साधारणशरीस्नाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, शुभनाम, अशुभनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुःस्वस्नाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यशस्कीर्त्तिनाम, अयशस्कीर्त्तिनाम, निर्माण नाम और तीर्थंकरनाम ।
लवण समुद्र की भीतरी वेला को बयालीसहजार नाग धारण करते हैं ।
महालिका विमानप्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में बयालीस उद्देशन काल कहे गये हैं । प्रत्येक अवसर्पिणी काल का पाँचवा छठा आरा (दोनों मिल कर ) बयालीस हजार वर्ष का है । प्रत्येक उत्सर्पिणी काल का पहिला दूसरा आरा बयालीस हजार वर्ष का है ।
समवाय- ४३
[११९] कर्मविपाक सूत्र ( कर्मों का शुभाशुभ फल बतलानेवाले अध्ययन) के तेयालीस अध्ययन कहे गये हैं ।
पहिली, चौथी और पाँचवीं पृथ्वी में तेयालीस लाख नारकावास कहे गये हैं ।
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप के पूर्वी जगती के चरमान्त से गोस्तूभ आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त का विना किसी बाधा या व्यवधान के तेयालीस हजार योजन अन्तर है । इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में जानना । विशेषता यह है कि दक्षिण में दकभास, पश्चिम दिशा में शंख आवास पर्वत है और उत्तर दिशा में दकसीम आवासपर्वत है ।
महालिका विमान प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में तेयालीस उद्देशन काल कहे गये हैं ।
समवाय- ४४
[१२०] चवालीस ऋषिभासित अध्ययन कहे गये हैं, जिन्हें देवलोक से च्युत हुए ऋषियों ने कहा है ।
विमल अर्हत् के बाद चवालीस पुरुषयुग (पीढी) अनुक्रम से एक के पीछे एक सिद्ध बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
नागेन्द्र, नागराज, धरण के चवालीस लाख भवनावास कहे गये हैं । महालिका विमानप्रविभक्ति के चतुर्थ वर्ग में चवालीस उद्देशन काल कहे गये हैं ।
समवाय-४५
[१२१] समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) पैंतालीस लाख योजन लम्बा-चौड़ा कहा गया है । इसी प्रकार ऋतु (उड्डु) (सौधर्म - ईशान देव लोक में प्रथम पाथड़े में चार विमानावलिकाओं के मध्यभाग में रहा हुआ गोल विमान) और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्धिस्थान) भी पैंतालीस - पैंतालीस लाख योजन विस्तृत जानना चाहिए ।
धर्म अर्हत् पैंतालीस धनुष ऊंचे थे ।