Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 222
________________ समवाय-५०/१२८ २२१ पचास धनुष ऊंचे थे । पुरुषोत्तम वासुदेव पचास धनुष ऊंचे थे । सभी दीर्ध वैताढ्य पर्वत मूल में पचास योजन विस्तार वाले कहे गये हैं । लान्तक कल्प में पचास हजार विमानावास कहे गये हैं । सभी तिमिस्त्र गुफाएं और खण्डप्रपात गुफाएं पचास-पचास योजन लम्बी कही गई हैं । सभी कांचन पर्वत शिखरतल पर पचास-पचास योजन विस्तार वाले कहे गये हैं । समवाय-५० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-५१) [१२९] नवों ब्रह्मचर्यों के इक्यावन उद्देशन काल कहे गये हैं । __ असुरेन्द्र असुरराज चमर की सुधर्मा सभा इकावन सौ खम्भों से रचित है । इसी प्रकार बलि की सभा भी जानना चाहिए । सुप्रभ बलदेव इक्यावन हजार वर्ष की परमायु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए । दर्शनावरण और नाम कर्म इन दोनों कर्मों की इक्यावन उत्तर कर्मप्रकृतियां हैं । (समवाय-५२) [१३०] मोहनीय कर्म के बावन नाम कहे गये हैं । जैसे- क्रोध, कोप, रोष, द्वेष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, चंडिक्य, भंडन, विवाद, मान, मद, दर्प, स्तम्भ, आत्मोकर्ष, गर्व, परपरिवाद, अपकर्ष, परिभव, उन्नत, उन्नाम; माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, न्यवम, कल्क, कुरुक, दंभ, कूट, जिम्ह, किल्विष, अनाचरणता, गूहनता, वंचनता, पलिकुंचनता, सातियोग, लोभ, इच्छा, मूर्छा, कांक्षा, गृद्धि, तृष्णा, भिध्या, अभिध्या, कामाशा, भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा, नन्दी, राग । गोस्तंभ आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से वडवामुख महापाताल का पश्चिमी चरमान्त बाधा के विना बावन हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है । इसी प्रकार लवण समुद्र के भीतर अवस्थित दकभास केतुक का, शंख नामक जूपक का और दकसीम नामक ईश्वर का, इन चारों महापाताल कलशों का भी अन्तर जानना चाहिए । ज्ञानावरणीय, नाम और अन्तराय इन तीनों कर्मप्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियां बावन है । सौधर्म, सनत्कुमार और माहेन्द्र इन तीन कल्पों में बावन लाख विमानावास है । (समवाय-५३) [१५३] देवकुरु और उत्तरकुरु की जीवाएं तिरेपन-तिरेपन हजार योजन से कुछ अधिक लम्बी कही गई हैं । महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वतों की जीवाएं तिरेपन-तिरेपन हजार नौ सौ इकत्तीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग प्रमाण लम्बी कही श्रमण भगवान् महावीर के तिरेपन अनगार एक वर्ष श्रमणपर्याय पालकर महान्विस्तीर्ण एवं अत्यन्त सुखमय पाँच अनुत्तर महाविमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए ।

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