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समवाय-२३/५३
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मध्यमग्रैवेयक के देवों की जघन्य स्थिति तेईस सागरोपम है | जो देव अधस्तन ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेईस सागरोपम है । वे देव साढ़े ग्यारहमासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के तेईस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं, जो तेईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-२३ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-२४) [५४] चौबीस देवाधिदेव कहे गये हैं । जैसे—ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, सुविधि (पुष्पदन्त) शीतल, श्रेयान्स, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्ली, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्वनाथ और वर्धमान ।
क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वतों की जीवाएं चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन और एक योजन के अडतीस भागों में से एक भाग से कुछ अधिक लम्बी है ।
चौबीस देवस्थान इन्द्र-सहित कहे गये हैं । शेष देवस्थान इन्द्र-रहित, पुरोहित-रहित हैं और वहाँ के देव अहमिन्द्र कहे जाते हैं ।
उत्तरायण-गत सूर्य चौबीस अंगुलवाली पौरुषी छाया को करके कर्क संक्रान्ति के दिन सर्वाभ्यन्तर मंडल से निवृत्त होता है । गंगा-सिन्धु महानदियाँ प्रवाह (उद्गम-) स्थान पर कुछ अधिक चौबीस-चौबीस कोश विस्तार वाली कही गई हैं । रक्ता-रक्तवती महानदियाँ प्रवाहस्थान पर कुछ अधिक चौबीस-चौबीस कोश विस्तारवाली कही गई हैं ।
रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति चौबीस पल्योपम कही गई है । अधस्तन सातवीं पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति चौबीस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति चौबीस पल्योपम कही गई है ।।
सौधर्म-ईशान कल्प में कितनेक देवों की स्थिति चौबीस पल्योपम कही गई है । अधस्तन-उपरिम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति चौबीस सागरोपम है । जो देव अधस्तनमध्यम ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौबीस सागरोपम है । वे देव बारह मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों को चौबीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौबीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-२४ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-२५) [५५] प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के (द्वारा उपदिष्ट) पंचयाम की पच्चीस भावनाएं कही गई हैं । जैसे—प्राणातिपात-विरमण महाव्रत की पाँच भावनाएं-] १. ईर्यासमिति, २.