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समवाय- २१/५१
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के भीतर दश वार मायास्थानों का सेवन करने वाला शबल और २१. वार वार शीतल जल से व्याप्त हाथों से अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुओं को ग्रहण कर खाने वाला शबल ।
जिसने अनन्तानुबन्धी चतुष्क और दर्शनमोहत्रिक इन सात प्रकृतियों का क्षय कर दिया है ऐसे क्षायिक सम्यग्दृष्टि अष्टम गुणस्थानवर्त्ती निवृत्तिबादर संयत के मोहनीय कर्म की इक्कीस प्रकृतियों का सत्त्व कहा गया है । जैसे— अपत्याख्यान क्रोधकषाय, अप्रत्याख्यान मानकषाय, अप्रत्याख्यान माया कपाय, अप्रत्याख्यान लोभकषाय, प्रत्याख्यानावरण क्रोधकषाय, प्रत्याख्यानावरण मानकषाय, प्रत्याख्यानावरण मायाकषाय, प्रत्याख्यानावरण लोभकषाय, [संज्वलन क्रोधकषाय, संज्वलन मानकषाय, संज्वलन मायाकषाय, संज्वलन लोभकषाय] स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, अरति, रति, भय, शोक और दुगुंछा (जुगुप्सा) ।
प्रत्येक अवसर्पिणी के पांचवें और छठे और इक्कीस - इक्कीस हजार वर्ष के काल वाले कहे गये हैं । जैसे— दुःषमा और दुःषम - दुःषमा । प्रत्येक उत्सर्पिणी के प्रथम और द्वितीय और इक्कीस-इक्कीस हजार वर्ष के काल वाले कहे गये हैं । जैसे—– दुःषम - दुःषमा और दुःषमा । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति इक्कीस पल्योपम की कही गई है । छठी तमः प्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति इक्कीस सागरोपम कही गई है । कितने असुरकुमार देवों की स्थिति इक्कीसः पल्योपम कही गई है ।
सौधर्म - ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति इक्कीस पल्योपम कही गई है । आरणकल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति इक्कीस सागरोपम कही गई है । अच्युत कल्प में देवों की जघन्य स्थिति इक्कीस सागरोपम कही गई है । वहाँ जो देव श्रीवत्स, श्रीदामकाण्ड, मल्ल, कृष्ट, चापोन्नत और आरणावतंसक नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम कही गई है । वे देव इक्कीस अर्धमासों (साढ़े दश मासों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास- निश्वास लेते हैं । उन देवों के इक्कीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो इक्कीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे, और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ।
समवाय- २१ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय- २२
[५२] बाईस परीषह कहे गये हैं । जैसे— दिगिंछा (बुभुक्षा) परीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, उष्णपरीषह, दंशमशकपरीषह, अचेलपरीषह, अरतिपरीषह, स्त्रीपरीषह, चर्यापरीषह, निषद्यापरीषह, शय्यापरीषह, आक्रोशपरीषह, वधपरीषह, याचनापरीषह, अलाभपरीषह, रोगपरीषह, तृणस्पर्शपरीषह, जल्लपरीषह, सत्कार - पुरस्कारपरीषह, प्रज्ञापरीषह, अज्ञानपरीषह और अदर्शनपरीषह ।
दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग में बाईस सूत्र स्वसमयसूत्रपरीपाटी से छिन्न- छेदनयिक हैं । बाईस सूत्र आजीविकसूत्रपरिपाटी से अच्छिन्न- छेदनयिक हैं । बाईस सूत्र त्रैराशिकसूत्रपरिपाटी से नयत्रिक सम्बन्धी हैं । बाईस सूत्र चतुष्कनयिक हैं जो चार नयों की अपेक्षा से हैं ।