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समवाय- ३०/७४
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[७४] राजा का जो मंत्री - अमात्य - अपने ही राजा की दारों (स्त्रियों) को, अथवा धन आने के द्वारों को विध्वंस करके और अनेक सामन्त आदि को विक्षुब्ध करके राजा को अधिकारी करके राज्य पर, रानियों पर या राज्य के धन आगमन के द्वारों पर स्वयं अधिकार जमा लेता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[ ७५ ] जिसका सर्वस्व हरण कर लिया है, वह व्यक्ति भेंट आदि लेकर और दीन वचन बोलकर अनुकूल बनाने के लिए यदि किसी के समीप आता है, ऐसे पुरुष के लिए जो प्रतिकूल वचन बोलकर उसके भोग उपभोग के साधनों को विनष्ट करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[ ७६ ] जो पुरुष स्वयं अकुमार होते हुए भी 'मैं कुमार हूँ', ऐसा कहता है और स्त्रियों में गृद्ध और उनके अधीन रहता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[७७] जो कोई पुरुष स्वयं अब्रह्मचारी होते हुए भी 'मैं ब्रह्मचारी हूं' ऐसा बोलता है, वह बैलों के मध्य में गधे के समान विस्वर (बेसुरा) नाद (शब्द) करता - रेंकता हुआ महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[७८] तथा उक्त प्रकार से जो अज्ञानी पुरुष अपना ही अहित करनेवाले मायाचारयुक्त बहुत अधिक असत्य वचन बोलता है और स्त्रियों के विषयों में आसक्त रहता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[७९] जो राजा आदि की ख्याति से अर्थात् 'यह उस राजा का या मंत्री आदि का सगासम्बन्धी है' ऐसी प्रसिद्धि से अपना निर्वाह करता हो अथवा आजीविका के लिए जिस राजा के आश्रय में अपने को समर्पित करता है, अर्थात् उसकी सेवा करता है और फिर उसी धन में लुब्ध होता है, वह पुरुष महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[ ८० ] किसी ऐश्वर्यशाली पुरुष के द्वारा, अथवा जन-समूह के द्वारा कोई अनीश्वर ( ऐश्वर्यरहित निर्धन ) पुरुष ऐश्वर्यशाली बना दिया गया, तब उस सम्पत्ति - विहीन पुरुष के अतुल (अपार) लक्ष्मी हो गई
[१] यदि वह ईर्ष्या द्वेष से प्रेरित होकर, कलुषता - युक्त चित्त से उस उपकारी पुरुष के या जन-समूह के भोग - उपभोगादि में अन्तराय या व्यवच्छेद डालने का विचार करता है, तो वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[८२] जैसे सर्पिणी (नागिन ) अपने ही अंडों को खा जाती है, उसी प्रकार जो पुरुष अपना ही भला करने वाले स्वामी का सेनापति का अथवा धर्मपाठक का विनाश करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[८३] जो राष्ट्र के नायक का या निगम (विशाल नगर) के नेता का अथवा, महायशस्वी सेठ का घात करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[८४] जो बहुत जनों के नेता का, दीपक के समान उनके मार्ग-दर्शक का और इसी प्रकार के अनेक जनों के उपकारी पुरुष का घात करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[८५] जो दीक्षा लेने के लिए उपस्थित या उद्यत पुरुष को, भोगों से विरक्त जन को, संयमी मनुष्य को या परम तपस्वी व्यक्ति को अनेक प्रकारों से भड़का कर धर्म से भ्रष्ट करता
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