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स्थान-१०/-/९६०
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करना । छंदना समाचारी-लायी हुई भिक्षा में से किसी को कुछ आवश्यक हो तो “लो" ऐसा कहना । निमन्त्रणा समाचारी-मैं आपके लिए आहारादि लाऊँ ? इस प्रकार गुरु से पूछना । उपसंपदा समाचारी-ज्ञानादि की प्राप्ति के लिए गच्छ छोड़कर अन्य साधु के आश्रय में रहना ।
[९६१] श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में ये दस महास्वप्न देखकर जागृत हुये, यथा-प्रथम स्वप्न में एक महा भयंकर जाज्वल्यमान ताड जितने लम्बे पिशाच को देखकर जागृत हुए । द्वितीय स्वप्न में एक श्वेत पंखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुये, तृतीय स्वप्न में एक विचित्र रंग की पांखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुये, चौथे स्वप्न में सर्व रत्नमय मोटी मालाओं की एक जोड़ी को देखकर जागृत हये, पांचवे स्वप्न में श्वेत गायों के एक समूह को देखकर जागत हये. छठे स्वप्न में कमल फूलों से आच्छादित एक महान पद्म सरोवर को देखकर जागृत हुये, सातवें स्वप्न मेंएक सहस्त्र तरंगी महासागर को अपनी भुजाओं से तिरा हुआ जानकर जागृत हुये | आठवें स्वप्न में एक महान् तेजस्वी सूर्य को देखकर जागृत हुये । नव में स्वप्न में एक महान् मानुषोत्तर पर्वत को वैडूर्यमणिवर्ण वाली अपनी आँतों से परिवेष्टित देखकर जागृत हुए । दसवें स्वप्न में महान् मेरु पर्वत की चूलिका पर स्वयं को सिंहासनस्थ देखकर जागृत हुए ।
प्रथम स्वप्न में ताल पिशाच को पराजित देखने का अर्थ यह है कि भगवान महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट कर दिया । द्वितीय स्वप्न में श्वेत पांखों वाले पुंस्कोकिल को देखने का अर्थ यह है कि भगवान महावीर शुक्ल ध्यान में रमण कर रहे थे । तृतीय स्वप्न में विचित्र रंग की पङ्खों वाले पुंस्कोकिल को देखने का अर्थ यह है कि भगवान महावीर ने स्वसमय और परसमय के प्रतिपादन से चित्रविचित्र द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक का सामान्य कथन किया, विशेष कथन किया, प्ररूपण किया, युक्ति पूर्वक क्रियाओं के स्वरूप का दर्शन निदर्शन किया । यथा-आचाराङ्ग यावत् दृष्टिवाद । चतुर्थ स्वप्न में सर्व रत्नपय माला युगल को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने दो प्रकार का धर्म कहा-यथा-आगार धर्म और अणगारधर्म । पाँचवे स्वप्न में श्वेत गो-वर्ग को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर के चार प्रकार का संघ था । श्रमण, श्रमणियां, श्रावक, श्राविकायें ।
छठे स्वप्न में पद्म सरोवर को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों का प्रतिपादन किया । यथा-भवनपति २. वाणव्यन्तर, ३. ज्योतिषी, ४. वैमानिक । सातवें स्वप्न में सहस्त्रतरगी सागर को भुजाओं से तिरने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने अनादि अनन्त दीर्ध मार्ग वाली गति रूप विकट भवाटवी को पार किया । आठवें स्वप्न में तेजस्वी सूर्य को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर को अनन्त ज्ञान अनन्त दर्शन उत्पन्न हुआ । नव में स्वप्न में आँतों से परिवेष्टित मानुषोत्तर पर्वत को देखने का अर्थ यह है कि इस लोक के देव मनुष्य ओर असुरों में श्रमण भगवान महावीर की कीर्ति एवं प्रशंसा इस प्रकार फैल रही है कि श्रमण भगवान महावीर सर्वज्ञ सर्वदर्शी सर्वसंशयोच्छेदक एवं जगद्वत्सल हैं । दसवे स्वप्न में चूलिका पर स्वयं को सिंहासनस्थ देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर देव मनुष्यों और असुरों की परिषद में केवली प्रज्ञप्त धर्म का समान्य से कथन करते हैं यावत् समस्त नयोंको युक्तिपूर्वक समझाते हैं ।
[९६२] सराग सम्यग्दर्शन दस प्रकार का है ।