________________
१७८
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
छोड़ता है तो आशातना करने वाला पूर्ववत् भस्म हो जाता है । इसी प्रकार देवता और श्रमण-ब्राह्मण जब एक साथ तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाला पूर्ववत् भस्म हो जाता है । कोई तेजोलेश्या वाला किसी श्रमण की आशातना करने के लिये उस पर तेजोलेश्या छोड़ता है वह उसका कुछ भी अनर्थ नहीं कर सकती हैं वह तेजोलेश्या इधर से उधर ऊँची नीची होती हैं और उस श्रमण के चारों ओर धूमकर आकाश में उछलती है और वह तेजोलेश्या छोड़ने वाले की ओर मुडकर उसे ही भस्म कर देती है जिस प्रकार गोशालक की तेजोलेश्या से गोशालक ही मरा किन्तु भगवान महावीर का कुछ भी नही बिगड़ा ।
[१००१आश्चर्य दस प्रकार के हैं, यथा
[१००२] उपसर्ग-भगवान महावीर की केवली अवस्था में भी गोशालक ने उपसर्ग किया । गर्भहरण-हरिण गमेषी देव ने भगवान महावीर के गर्भ को देवानन्दा की कुक्षी से लेकर त्रिशला माता की कुक्षी में स्थापित किया । स्त्री तीर्थङ्कर-भगवान मल्लीनाथ स्त्रीलिङ्ग (वेद) में तीर्थङ्कर हुए । अभावित पर्षदा केवल ज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् भगवान महावीर की देशना निष्फल गई किसी ने धर्म स्वीकार नहीं किया । कृष्ण का अपरकंका गमन, कृष्ण वासुदेव द्रौपदी को लाने के लिए अपरकंका नगरी गये । चन्द्र-सूर्य का आगमन कोशाम्बि नगरी में भगवान महावीर की वन्दना के लिए शास्वतविमान सहित चन्द्र-सूर्य आये । तथा
[१००३] हरिवंश कुलोप्तत्ति-हविर्ष क्षेत्र के युगलिये का भरत क्षेत्र में आगमन हुआ और उससे हरिवंश कुल की उत्पत्ति हुई । युगलिये का निरुपक्रम आयु घटा और उसकी नरक में उत्पत्ति हुई । चमरोत्पात-चमरेन्द्र का सौधर्म देवलोक में जाना । एक सौ आठ सिद्धउत्कृष्ट अवगाहना वाले एक समय में एक सौ आठ सिद्ध हुए । असंयत पूजा-आरम्भ और परिग्रह के धारण करने वाले ब्राह्मणों की साधुओं के समान पूजा हुई ।
[१००४] इस रत्नप्रभा पृथ्वी का रत्नकाण्ड दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी का वज्र काण्ड दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है ।
इसी प्रकार-३. वैडूर्य काण्ड, ४. लोहिताक्ष काण्ड, ५. मसारगल्ल काण्ड, ६. हंसगर्भ काण्ड, ७. पुलक काण्ड, ८. सौगंधिक काण्ड, ९. ज्योतिरस काण्ड, १०. अंजन काण्ड, ११. अंजन पुलक काण्ड, १२. रजत काण्ड, १३. जलातरूप काण्ड, १४. अंक काण्ड, १५. स्फटिक काण्ड, १६. रिष्ट काण्ड ये सब रत्न काण्ड के समान दस सौ (एक हजार) योजन के चौड़े हैं ।
[१००५] सभी द्वीप समुद्र दस सौ (एक हजार) योजन के गहरे हैं । सभी महाद्रह दस योजन गहरे हैं । सभी सलिल कुण्ड दस योजन गहरे हैं । शीता और शीतोदा नदी के मूल मुख दस-दस योजन गहरे हैं ।
[१००६] कृत्तिका नक्षत्र चन्द्र के सर्व बाह्य मण्डल से दसवें मण्डल में भ्रमण करता है । अनुराधा नक्षत्र चन्द्र के सर्व आभ्यन्तर मण्डल से दसवें मण्डल में भ्रमण करता है ।
[१००७] ज्ञान की वृद्धि करने वाले दस नक्षत्र हैं, यथा[१००८] मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, तीन पूर्वा, मूल, अश्लेषा, हस्त और चित्रा ।
[१००९] चतुष्पद स्थलचर तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों की दस लाख कुल कोटी हैं । उरपरिसर्प स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रियों की दस लाख कुल कोटी हैं ।