Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 187
________________ - हिन्दी अनुवाद आगमसूत्र १८६ भय, आजीवभय, मरणभय, और अश्लोकभय । सात समुद्घात कहे गये हैं, जैसेवेदनासमुद्घात, कषाय-समुद्घात, मरणान्तिक- समुद्घात वैक्रियसमुद्घात, आहारकसमुद्घात और केवलसमुद्घात । श्रमण भगवान् महावीर सात रत्नि-हाथ प्रमाण शरीर से ऊंचे थे । इस जबूद्वीप नामक द्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं । जैसे- क्षुल्ल हिमवंत, महाहिमवंत, निषध, नीलवंत, रूक्मी, शिखरी और मन्दर । इस जंबूद्वीप नामक द्वीप में सात क्षेत्र हैं । जैसे- भरत, हैमवत, हरिवर्ष, महाविदेह, रम्यक, ऐरण्यवत और ऐरवत । बारहवें गुणस्थानवर्ती क्षीणमोह वीतराग मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों का वेदन करते हैं । मघा नक्षत्र सात तारावाला कहा गया है । कृत्तिका आदि सात नक्षत्र पूर्व दिशा की और द्वारवाले कहे गये हैं । पाठान्तर के अनुसार - अभिजित् आदि सात नक्षत्र पूर्व दिशा की ओर द्वार वाले कहे गये हैं । मघा आदि सात नक्षत्र दक्षिण दिशा की ओर द्वार वाले कहे गये हैं । अनुराधा आदि सात नक्षत्र पश्चिम दिशा की ओर द्वार वाले कहे गये हैं । धनिष्ठा आदि सात नक्षत्र उत्तर दिशा की ओर द्वार वाले कहे गये हैं । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है । तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी में नारकियों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम कही गई है । चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में नारकियों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है । सौधर्म - ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है । सनत्कुमार कल्प में कितनेक देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोगपम कही गई है । माहेन्द्र कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक सात सागरोपम कही गई है । ब्रह्मलोक में कितनेक देवों की स्थिति कुछ अधिक सात सागरोपम है । उनमें जो देव सम, समप्रभ, महाप्रभ, प्रभास, भासुर, विमल, कांचनकूट और सनत्कुमारावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम है । वे देव साढ़े तीनमासों के बाद आण - प्राण- उच्छ्वास- निःश्वास लेते हैं । उन देवों की सात हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सात भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय - ७ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् अनुवाद पूर्ण समवाय-८ I [८] आठ मदस्थान कहे गये हैं । जैसे- जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद । आठ प्रवचन - माताएं कही गई हैं । जैसे - ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान- भांड - मात्र निक्षेपणासमिति, उच्चार-प्रस्त्रवण- खेल सिंघारणपरिष्ठापनासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति । वानव्यन्तर देवों के चैत्यवृक्ष आठ योजन ऊंचे कहे गये हैं । ( उत्तरकुरु में स्थित

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