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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
नहीं सूंघना, कामोद्दीपक रसों का स्वाद नहीं लेना, कामोद्दीपक कोमल मृदुशय्यादि का स्पर्श नहीं करना, और सातावेदनीय के उदय से प्राप्त सुख में प्रतिबद्ध (आसक्त) नहीं होना ।
ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियाँ (विनाशिकाएं) कही गई हैं । जैसे- स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन का सेवन करना १ स्त्रियों की कथाओं को कहना - स्त्रियों सम्बन्धी बातें करना २, स्त्रीगणों का उपासक होना ३, स्त्रियों की मनोहर इन्द्रियों और मनोरम अंगो को देखना और उनका चिन्तन करना ४, प्रणीत-रस- बहुल गरिष्ठ भोजन करना ५, अधिक मात्रा में आहार -पान करनां ६, स्त्रियों के साथ की गई पूर्व रति और पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण करना ७, कामोद्दीपक शब्दों को सुनना, कामोद्दीपक रूपों को देखना, कामोद्दीपक गन्धों को सूंघना, कामोद्दीपक रसों का स्वाद लेना, कामोद्दीपक कोमल मृदुशय्यादि का स्पर्श करना ८, और सातावेदनीय के उदय से प्राप्त सुख में प्रतिबद्ध ( आसक्त) होना ९ ।
नौ ब्रह्मचर्य अध्ययन कहे गये हैं । जैसे
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[१२] शस्त्रपरिज्ञा १, लोकविजय २, शीतोष्णीय ३, सम्यक्त्व ४, आवन्ती ५, धूत ६, विमोह ७, उपधानश्रुत ८, और महापरिज्ञा ९ ।
[१३] पुरुषादानीय पार्श्वनाथ तीर्थंकर देव नौ रत्नि (हाथ) ऊँचे थे ।
अभिजित् नक्षत्र कुछ अधिक नौ मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करता है । अभिजित् आदि नौ नक्षत्र चन्द्रमा का उत्तर दिशा की ओर से योग करते हैं । वे नौ नक्षत्र अभिजित् से लगाकर भरणी तक जानना चाहिए ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से नौ सौ योजन ऊपर अन्तर करके उपरितन भाग में ताराएं संचार करती हैं । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में नौ योजन वाले मत्स्य भूतकाल में नदीमुखों से प्रवेश करते थे, वर्तमान में प्रवेश करते हैं और भविष्य में प्रवेश करेंगे । जम्बूद्वीप के विजय नामक पूर्व द्वार की एक-एक बाहु (भुजा) पर नौ-नौ भौम (विशिष्ट स्थान या नगर) कहे गये हैं ।
वान व्यन्तर देवों की सुधर्मा नाम की सभाएं नौ योजन ऊंची कही गई हैं । दर्शनावरणीय कर्म की नौ उत्तर प्रकृतियां हैं । निद्रा, प्रचला, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानर्द्वि, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति नौ पल्योपम है । चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति नौ सागरोपम है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति नौ पल्योपम है ।
सौधर्म - ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति नौ पल्योपम है । ब्रह्मलोक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति नौ सागरोपम है । वहां जो देव पक्ष्म, सुपक्ष्म, पक्ष्मावर्त, पक्ष्मप्रभ, पक्ष्मकान्त, पक्ष्मवर्ण, पक्ष्मलेश्य, पक्ष्मध्वज, पक्ष्मश्रृंग, पक्ष्मसृष्ट पक्ष्मकूट, पक्ष्मोत्तरावतंसक, तथा सूर्य, सुसूर्य, सूर्यावर्त, सूर्यप्रभ, सूर्यकान्त, सूर्यवर्ण, सूर्यलेश्य, सूर्यध्वज, सूर्यश्रृंग, सूर्यसृष्ट, सूर्यकूट सूर्योत्तरावतंसक, ( रुचिर ) रुचिरावर्त, रुचिरप्रभ, रुचिरकान्त, रुचिरवर्ण, रुचिरलेश्य, रुचिरध्वज, रुचिरश्रृंग, रुचिरसृष्ट, रुचिरकूट, और रुचिरोत्तरावतंसक नामवाले विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति नौ सागरोपम कही गई है । वे देव नौ अर्धमासों (साढ़े चार मासों) के बाद आन-प्राण उच्छ्वास- निःश्वास लेते हैं । उन देवों को
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