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स्थान - १०/-/१०१०
[१०१०] दस स्थानों में बद्ध पुद्गल जीवों ने पाप कर्म रूप में ग्रहण किये, ग्रहण करते हैं और ग्रहण करेंगे । यथा - प्रथम समयोत्पन्न एकेन्द्रिय द्वारा निवर्तित यावत्अप्रथमसमयोत्पन्न पंचेन्द्रिय द्वारा निवर्तित पुद्गल जीवों ने पाप कर्मरूप में ग्रहण किये, ग्रहण करते हैं और ग्रहण करेंगे । इसी प्रकार चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के तीन-तीन विकल्प कहने चाहिए ।
दस प्रादेशिक स्कन्ध अनन्त हैं । दस प्रदेशावगाढ़ पुदगल अनन्त हैं । दस समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त हैं । दस गुण वाले पुद्गल अनन्त हैं । इसी प्रकार वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से यावत्-दस गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त हैं ।
स्थान - १० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण ३ स्थान- तृतीय अङ्गसूत्र - हिन्दी अनुवाद पूर्ण