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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[९६३] निसर्गरुचि, जो दूसरे का उपदेश सुने बिना स्वमति से सर्वज्ञ कथित सिद्धान्तों पर श्रद्धा करे । उपदेश रुचि-जो दूसरों के उपदेश से सर्वज्ञ प्रतिपादित सिद्धान्तों पर श्रद्धा करे। आज्ञारुचि-जो केवल आचार्य या सद्गुरु के कहने से सर्वज्ञ कथित सूत्रों पर श्रद्धा करे । सूत्र रुचि-जो सूत्र शास्त्र वांच कर श्रद्धा करे । बीजरुचि-जो एक पद के ज्ञान से अनेक पदो को समझ ले | अभिगम रुचि-जो शास्त्र को अर्थ रहित समझें, विस्तार रुचि-जो द्रव्य और उनके पर्यायों को प्रमाण तथा नय के द्वारा विस्तार पूर्वक समझे। क्रिया रुचि-जो आचरण में रुचि रखे । संक्षेप रुचि-जो स्वमत और परमत में कुशल न हो किन्तु जिसकी रुचि संक्षिप्त त्रिपदी में हों । धर्मरुचि-जो वस्तु स्वभाव की अथवा श्रुत चारित्र रूप जिनोक्त धर्म की श्रद्धा करे ।
[९६४] संज्ञा दस प्रकार की होती है, यथा-आहार संज्ञा यावत् परिग्रह संज्ञा, क्रोध संज्ञा यावत् लोभ संज्ञा, लोकसंज्ञा, ओधसंज्ञा, नैरयिकों में दस प्रकार की संज्ञायें होती हैं, इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त दस संज्ञायें हैं ।
[९६५] नैरयिक दस प्रकार की वेदना का अनुभव करते हैं, यथा-शीत वेदना, उष्णवेदना, क्षुधा वेदना, पिपासा वेदना, कंडुवेदना, पराधीनता, भय, शोक, जरा, व्याधि ।
[९६६] दस पदार्थों छास्थ पूर्ण रूप से न जानता है और न देखता है, यथाधर्मास्तिकाय यावत् वायु, यह पुरुष जिन होगा या नहीं, यह पुरुष सब दुःखों का अन्त करेगा या नहीं ? इन्हीं दस पदार्थों को सर्वज्ञ सर्वदर्शी पूर्ण रूप से जानते हैं और देखते हैं ।
[९६७] दशा दस हैं, यथा-कर्मविपाक दशा, उपासक दशा, अंतकृद् दशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, आचार दशा, प्रश्नव्याकरण दशा, बंध दशा, दोगृद्धि दशा, दीर्ध दशा, संक्षेपित दिशा । कर्म विपाक दशा के दस अध्ययन हैं, यथा
[९६८] मृगापुत्र, गोत्रास, अण्ड, शकट, ब्राह्मण, नंदिसेण, सौरिक, उदुंबर, सहसोदाहआमरक, लिच्छवी कुमार ।
[९६९] उपासक दशा के दस अध्ययन हैं, यथा
[९७०] आनन्द, कामदेव, चुलिनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्डकोलिक, शकडालपुत्र, महाशतक, नंदिनीपिता, सालेयिका पिता ।
[९७१] अन्तकृद्दशा के दस अध्ययन हैं, यथा
[९७२] नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकर्म, पल्यंक, और अंबडपुत्र ।
[९७३] अनुत्तरोपपातिक दशा के दस अध्ययन हैं, यथा
[९७४] कृषिदास, धन्ना, सुनक्षत्र, कार्तिक, संस्थान, शालिभद्र, आनन्द, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त ।
[९७५] आचारदशा (दशा श्रुतस्कंध) के दस अध्ययन हैं, यथा- बीस असमाधि स्थान, इकबीस शबल दोष, तेतीस आशातना, आठ गणिसम्पदा, दस चित्त समाधि स्थान, इग्यारह श्रावक प्रतिमा, बारह भिक्षु प्रतिमा, पर्युषण कल्प, तीस मोहनीय स्थान, आजातिस्थान |
प्रश्न व्याकरण दशा के दस अध्ययन हैं, यथा-उपमा, संख्या, कृषिभाषित, आचार्य भाषित, महावीरभाषित, क्षौमिकप्रश्न, कोमलप्रश्न, आदर्शप्रश्न, अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न ।
बन्ध दशा के दस अध्ययन हैं, यथा-बन्ध, मोक्ष, देवधि, दशारमंडलिक, आचार्य