Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 173
________________ १७२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद से देना । गोरखदान-अपने यश के लिये गर्व पूर्वक देना, अधर्मदान-अधर्मी पुरुष को देना, धर्मदान-सुपात्र को देना, आशादान-सुफल की आशा से देना, प्रत्युपकारदान-किसी के उपकार के बदले कुछ देना । [९५३]गति दश प्रकार की है, यथा-नरक गति, नरक की विग्रहगति, तिर्यंचगति, तिर्यञ्च की विग्रहगति, मनुष्यगति, मनुष्य विग्रहगति, देवगति, देव विग्रहगति, सिद्धगति, सिद्ध विग्रहगति । [९५४] मुण्ड दस प्रकार के हैं, यथा श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड यावत् स्पर्शेन्द्रियमुण्ड, क्रोध मुण्ड यावत् लोभ मुण्ड, सिरमुण्ड ।। [९५५] संख्यान-गणित दस प्रकार के हैं, यथा [९५६] परिकर्म गणित-अनेक प्रकार की गणित का संकलन करना । व्यवहारगणितश्रेणी आदि का व्यवहार । रज्जूगणित-क्षेत्रगणित, राशिगणित-त्रिराशी आदि, कलांसवर्ण गणितकला अंशों का समीकरण । गुणाकार गणित-संख्याओं का गुणाकार करना, वर्ग गणितसमान संख्या को समान संख्या से गुणा करना । धन गणित-समान संख्या को समान संख्या से दो बार गुणा करना, यथा-दो का धन आठ, वर्ग-वर्ग गणित-वर्ग का वर्ग से गुणा करना, यथा-दो का वर्ग चार और चार का वर्ग सोलह । यह वर्ग-वर्ग हैं । कल्प गणित-छेद गणित करके काष्ठ का करवत से छेदन करना । [९५७] प्रत्याख्यान दश प्रकार के हैं, यथा [९५८] अनागत प्रत्याख्यान-भविष्य में तप करने से आचार्यादि की सेवा में बाधा आने की सम्भावना होने पर पहले तप कर लेना । अतिक्रान्त प्रत्याख्यान-आचार्यादि की सेवा में किसी प्रकार की बाधा न आवे-इस संकल्प से जो तप अतीत में नहीं किया जा सका उस तप को वर्तमान में करना । कोटी सहित प्रत्याख्यान-एक तप के अन्त में दूसरा तप आरम्भ कर देना । नियंत्रित प्रत्याख्यान-पहले से यह निश्चित कर लेना कि कैसी भी परिस्थिति हो किन्तु मुझे अमुक दिन अमुक तप करना ही है | सागार प्रत्याख्यान-जो तप आगार सहित किया जाय । अनागार प्रत्याख्यान-जिस तप में “महत्तरागारेण" आदि आगार न रखे जाय । परिमाण कृत प्रत्याख्यान-जिस तप में दत्ति, कवल, घर और भिक्षा का परिमाण करना । निरवशेसष प्रत्याख्यान-सर्व प्रकार के अशनादि का त्याग करना । सांकेतिक प्रत्याख्यान-अंगुष्ठ, मुष्टि आदि के संकेत से प्रत्याख्यान करना । अद्धा प्रत्याख्यान-पोरसी आदि काल विभाग से प्रत्याख्यान करना । [९५९] समाचारी दस प्रकार की हैं, यथा [९६०] इच्छाकार समाचारी स्वेच्छापूर्वक जो क्रिया की जाय और उसके लिए गुरु से आज्ञा प्राप्त कर ली जाय । मिच्छाकार समाचारी-मेरा दुष्कृत मिथ्या हो इस प्रकार की क्रिया करना । तथाकार समाचारी-आपका कहना यथार्थ है इस प्रकार कहना । आवश्यिका समाचारी आवश्यक कार्य है ऐसा कहकर बाहर जाना । नैषधकी समाचारी-बाहर से आने के बाद में अब मैं गमनागमन बन्द करता हूँ ऐसा कहना । आपृच्छना समाचारी-सभी क्रियायें गुरु को पूछ कर के करना । प्रतिपृच्छा समाचारी-पहले जिस क्रिया के लिए गुरु की आज्ञा प्राप्त न हुई हो और उसी प्रकार की क्रिया करना आवश्यक हो तो पुनः गुरु आज्ञा प्राप्त

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