________________
स्थान-९/-1८६१
१५९
में दीर्ध वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं ।
जम्बूद्वीप के विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा
[८६२] सिद्ध, विद्युत्प्रभ, देवकुरु, पद्मप्रभ, कनकप्रभ, श्रावस्ती, शीतोदा, सजल और हरीकूट ।
[८६३] जम्बूद्वीप के पक्ष्मविजय में दीर्ध वैताढ्यपर्वत पर नौ कूट हैं, यथा सिद्ध कूट, पक्ष्मकूट, खण्डप्रपात, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुहा, पक्ष्मकूट, वैश्रमण कूट । इसी प्रकार यावत् सलिलावती विजय में दीर्ध वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं । इसी प्रकार वप्रविजय में दीर्ध वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं । इसी प्रकार यावत्-गंधिलावती विजय में दीर्ध वैताढ्यपर्वत पर नौ कूट हैं, यथा
[८६४] सिद्धकूट, गंधिलावती, खण्डप्रपात, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुहा, गंधिलावती और वैश्रमण ।
[८६५] इस प्रकार सभी दीर्ध वैताढ्यपर्वतों पर दूसरा और नवमा कूट समान नाम वाले हैं शेष कूटों के समान पूर्ववत् हैं । जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत की उत्तर दिशा में नीलवान वर्षधर पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा
[८६६] सिद्धकूट, नीलवानकूट, विदेह, शीता, कीर्ति, नारिकान्ता, अपरविदेह, रम्यक्कूट और उपदर्शनकूट ।
[८६७] जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत पर उत्तर दिशा में ऐवत क्षेत्र में दीर्ध वैताढ्यपर्वत पर नौ कूट हैं, यथा
[८६८] सिद्ध, रत्न, खण्डप्रपात, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुहा, ऐवत और वैश्रमण ।
[८६९] भगवान् पार्श्वनाथ पुरुषों में आदेयनामकर्म वज्रकृषभ-नाराज संघयण और समचतुरस्त्र संस्थान वाले थे तथा नौ हाथ के ऊँचे थे ।
[८७०] भगवान् महावीर के तीर्थ में नौ जीवों ने तीर्थंकरगोत्रनामकर्म का उपार्जन किया, श्रेणिक, सुपार्श्व, उदायन, पोटिलमुनि, दृढ़ायु, शंख, शतक, सुलसा, रेवती ।
[८७१] आर्य कृष्णवासुदेव, राम बलदेव, उदक पेढाल पुत्र, पोटिलमुनि, शतक गाथापति, दारूकनिर्ग्रन्थ, सत्यकी निर्ग्रन्थीपुत्र, सुलसाश्राविका से प्रतिबोधित अम्बड़ परिवाज्रक, भगवंत पार्श्वनाथ की प्रशिष्या सुपाश्र्वाआर्या । ये आगामी उत्सर्पिणी में चारयाम धर्म की प्ररूपणा करके सिद्ध होंगे-यावत्-सब दुःखों का अन्त करेंगे ।
[८७२] हे आर्य ! यह श्रेणिक राजा मरकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमंतक नरकावास में चौरासी हजार वर्ष की नारकीय स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न होगा और अती तीव्रयावत्-असह्य वेदना भोगेगा । यह उस नरक से निकलकर आगामी उत्सर्पिणी में इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्यपर्वत के समीप पुण्ड्रजन पद के शत द्वार नगर में संमति कुलकर भी भद्रा भार्या की कुक्षी में पुत्र रूप में उत्पन्न होगा । नौ मास और साढ़ेसात अहोरात्र बीतने पर सुकुमार हाथ पैर, प्रतिपूर्ण पंचेन्द्रिय शरीर और उत्तम लक्षण तिलमस युक्त यावत्रूपवान पुत्र पैदा होगा ।
जिस रात्रि में यह पुत्र रूप में पैदा होगा उस रात्रि में शतद्वार नगर के अन्दर और बाहर