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स्थान- १०/-/८८८
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स्थान-१०
[८८८] लोक स्थिति दश प्रकार की हैं, यथा - जीव मर-मरकर बार-बार लोक में ही उत्पन्न होते हैं । जीव सदा पाप कर्म करते हैं । जीव सदा मोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं । तीन काल में जीव अजीव नहीं होते हैं और अजीव जीव नहीं होते हैं । तीन काल में सप्राणी और स्थावर प्राणी विच्छिन्न नहीं होते हैं । तीन काल में लोक अलोक नहीं होता है और अलोक लोक नहीं होता है । तीन काल में लोक अलोक में प्रविष्ट नहीं होता है और अलोक लोक में प्रविष्ट नहीं होता है । जहाँ तक लोक है वहां तक जीव है और जहाँ तक जीव है वहाँ तक लोक है । जहाँ तक जीवों और पुद्गलों की गति है वहाँ तक लोक है, जहाँ तक लोक है वहाँ तक जीवों और पुद्गलों की गति है । लोकान्त में सर्वत्र रूक्ष पुद्गल हैं अतः जीव और पुद्गल लोकान्त के बाहर गमन नहीं कर सकते हैं ।
[८८९] शब्द दस प्रकार के हैं, यथा
[८९०] नीहारी - घन्टा के समान घोषवाला शब्द । डिंडिम-ढोल के समान घोष रहित शब्द । रूक्ष-काक के समान रूक्ष शब्द । भिन्न- कुष्टादिरोग से पीड़ित रोगी के समान शब्द | जर्जरित - वीणा के समान शब्द । दीर्घ- दीर्घ अक्षर के उच्चारण से होनेवाला शब्द । ह्रस्व- हस्व अक्षर के उच्चारण से होने वाला शब्द । पृथक्त्व - अनेक प्रकार के वाद्यों का एक समवेत स्वर । काकणी - कोयल के समान सूक्ष्म कण्ठ से निकलने वाला शब्द । किंकिणीछोटी-छोटी घंटियों से निकलनेवाला शब्द |
[८९१] इन्द्रियों के दश विषय अतीत काल के हैं, यथा-अतीत में एक व्यक्ति ने एक देश से शब्द सुना । अतीत में एक व्यक्ति ने सर्व देश से शब्द सुना । इसी प्रकार रूप, रस, गंध और स्पर्श के दो-दो भेद है ।
इन्द्रियों के दश विषय वर्तमान काल के हैं, यथा- वर्तमान में एक व्यक्ति एक देश से शब्द सुनता है । वर्तमान में एक व्यक्ति सर्व देश से शब्द सुनता है । इसी प्रकार रूप, रस, गंध और स्पर्श के दो-दो भेद हैं ।
इन्द्रियों के दश विषय भविष्यकाल के हैं, यथा- भविष्य में एक व्यक्ति एक देश से सुनेगा । भविष्य में एक व्यक्ति सर्व देश से सुनेगा । इसी प्रकार रूप, रस, गंध और स्पर्श के दो-दो भेद हैं ।
[८९२] शरीर अथवा स्कंध से पृथक् न हुए पुद्गल दश प्रकार से चलित होते हैं, यथा - आहार करते हुए पुद्गल चलित होते हैं । रस रूप में परिणत होते हुए पुद्गल चलित होते हैं । उच्छ्वास लेते समय वायु के पुद्गल चलित होते हैं । निश्वास लेते समय वायु के पुद्गल चलित होते हैं । वेदना भोगते समय पुद्गल चलित होते हैं । निर्जरित पुद्गल चलित होते हैं । वैक्रिय शरीर रूप में परिणत पुद्गल चलित होते हैं । मैथुन सेवन करते समय शुक्र के पुद्गल चलित होते हैं । यक्षाविष्ट पुरुष के शरीर के पुद्गल चलित होते हैं । शरीर के वायु से प्रेरित पुद्गल चलित होते हैं ।
[८९३] दश प्रकार से क्रोध की उत्पत्ति होती है, यथा-मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का इसने अपहरण किया था ऐसा चिन्तन करने से, इसने मुझे अमनोज्ञ शब्द,