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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[८४४ ] नौ ग्रैवेयक विमान प्रस्तट ( प्रतर) हैं, यथा - अधस्तन अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, अधस्तन मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, अधस्तन उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, मध्यम अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, मध्यम मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, मध्यम उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, उपरितन अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, उपरितन मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, उपरितन उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट ।
[८४५ ] नव ग्रैवेयक विमान प्रस्तटों के नौ नाम हैं, यथा- भद्र, सुभद्र, सुजात, सौमनस, प्रियदर्शन, सुदर्शन, अमोघ, सुप्रबुद्ध और यशोधर ।
[८४६ ] आयु परिणाम नौ प्रकार का है, यथा - गति परिणाम, गतिबंधणपरिणाम, स्थितिपरिणाम, स्थितिबंधणपरिणाम, उर्ध्वगोरखपरिणाम, अधोगोरखपरिणाम, तिर्यग्गोरख परिणाम, दीर्घ गोरखपरिणाम और ह्रस्व गोरव परिणाम |
[८४७ ] नव नवमिका भिक्षा प्रतिमा का सूत्रानुसार आराधन यावत् पालन इक्यासी रात दिन में होता है, इस प्रतिमा में ४०५ बार भिक्षा (दति) ली जाती हैं ।
[८४८] प्रायश्चित्त नौ प्रकार का है, यथा-आलोचनार्ह - गुरु के समक्ष आलोचना करने से जो पाप छूटे, यावत् मूलाई - ( पुनः दीक्षा देने योग्य) और अनवस्थाप्यार्ह - अत्यन्त संक्लिष्ट परिणाम वाले को इस प्रकार के तप का प्रायश्चित्त दिया जाता है । जिससे कि वह उठ बैठ नहीं सके । तप पूर्ण होने पर उपस्थापना (पुनः महाव्रतारोपणा) की जाती है और यह तप जहाँ तक किया जाता है वहां तक तप करने वाले से कोई बात नहीं करता । [८४९] जम्बूद्वीप के मेरु से दक्षिण दिशा के भरत में दीर्धवैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा
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[८५० ] सिद्ध, भरत, खण्डप्रपातकूट, मणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्र गुहा, भरत, और वैश्रमण ।
[८५१] जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में निषध वर्षधर पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा
[८५२ ] सिद्ध, निषध, हरिवर्ष, विदेह, हरि, धृति, शीतोदा, अपरविदेह, रुचक । [८५३] जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत पर नन्दनवन में नौ कूट हैं, यथा[८५४] नंदन, मेरु, निषध, हैमवन्त, रजत, रुचक, सागरचित, वज्र, बलकूट । [ ८५५ ] जम्बूद्वीप के माल्यवंत वक्षस्कार पर्वत पर नो कूट हैं, यथा
[ ८५६ ] सिद्ध, माल्यवंत, उत्तरकुरु, कच्छ, सागर, रजत, सीता, पूर्ण, हरिस्सहकूट । [८५७ ] जम्बूद्वीप के कच्छ विजय में दीर्ध वैताढ्यपर्वत पर नौ कूट है, यथा[८५८] सिद्ध, कच्छ, खण्डप्रपात, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिस्त्रगुहा, कच्छ,
और वैश्रमण ।
[८५९] जम्बूद्वीप के सुकच्छ विजय में दीर्ध वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं । यथा[८६०] सिद्ध, सुकच्छ, खण्डप्रपात, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिस्त्रगुहा, सुकच्छ
और वैश्रमण ।
[ ८६१] इसी प्रकार पुष्कलावती विजय में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं । इसी प्रकार वच्छ विजय में दीर्ध वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं यावत्-मंगलावती विजय