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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वाले । मोक्ष या परलोक नहीं है, ऐसा माननेवाले ।
[७१३] महानिमित्त आठ प्रकार का कहा गया है, यथा-भौम भूमि विषयक शुभाशुभ का ज्ञान करनेवाले शास्त्र । उत्पात-रुधिर वृष्टि आदि उत्पातों का फल बतानेवाला शास्त्र । स्वप्न-शुभाशुभ स्वप्नों का फल बतानेवाला शास्त्र । अंतरिक्ष-गांधर्व नगरादि का शुभाशुभ फल बतानेवाला शास्त्र । अंग-चक्षु, मस्तक आदि अंगों के फरकने से शुभाशुभ फल की सूचना देनेवाला शास्त्र । स्वर-षड्ज आदि स्वरों का शुभाशुभ फल बतानेवाला शास्त्र । लक्षण-स्त्री-पुरुष के शुभाशुभ लक्षण बतानेवाला शास्त्र । व्यञ्जन-तिल मस आदि के शुभाशुभ फल बतानेवाला शास्त्र ।
७१४-७२०] वचन विभक्ति आठ प्रकार की कही गयी है, यथा- निर्देश में प्रथमावह, यह, मैं । उपदेश में द्वितीया-यह करो ! इस श्लोक को पढ़ो ! करण में तृतीया-मैंने कुण्ड बनाया । सम्प्रदान में, चतुर्थी-नमः स्वस्ति, स्वाहा के योग में । अपादान में, पंचमीपृथक् करने में तथा ग्रहण करने में, यथा-कूप से जल निकाल, कोठी में से धान्य ग्रहण कर । स्वामित्व के सम्बन्ध में षष्ठी-इसका, उसका तथा सेठ का नौकर । सन्निधान अर्थ में सप्तमीआधार अर्थ में मस्तक पर मुकुट है । काल में प्रातःकाल में कमल खिलता है, भावरूप क्रिया विशेषण में सूर्य अस्त होने पर रात्रि हई । आमन्त्रण में अष्टमी-यथा-हे युवान !
[७२१] आठ स्थानों को छद्मस्थ पूर्णरूप से न देखता है और न जानता है । यथाधर्मास्तिकाय-यावत्, गंध और वायु । आठ स्थानों को सर्वज्ञ पूर्णरूप से देखता है और जानता है । यथा-धर्मास्तिकाय यावत्, गंध और वायु ।
[७२२] आयुर्वेद आठ प्रकार का कहा गया है, यथा-कुमार भृत्य-बाल चिकित्सा शास्त्र, कायचिकित्सा-शरीर चिकित्सा शास्त्र, शालाक्य-गले से ऊपर के अंगों की चिकित्सा का शास्त्र । शल्यहत्या-शरीर में कंटक आदि कहीं लग जाय तो उसकी चिकित्सा का शास्त्र, जंगोली-सर्प आदि के विष की चिकित्सा का शास्त्र | भूतविद्या-भूत-पिशाच आदि के शमन का शास्त्र, क्षारतंत्र-वीर्यपात की चिकित्सा का शास्त्र, रसायन-शरीर आयुष्य और बुद्धि की वृद्धि करनेवाला शास्त्र ।
[७२३] शक्रेन्द्र के आठ अग्रमहिषियां हैं, यथा-पद्मा, शिवा, सती, अंजू, अमला, आसरा, नवमिका, रोहिणी । ईशानेन्द्र के आठ अग्रमहिषियां हैं, यथा-१. कृष्णा, कृष्णराजी, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुंधरा । शक्रेन्द्र के सोम लोकपाल की आठ अग्रमहिषियाँ हैं, ईशानेन्द्र के वैश्रमण लोकपाल की आठ अग्रमहिषियाँ हैं ।
महाग्रह आठ हैं, यथा-चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, वृहस्पति, मंगल, शनैश्चर, केतु ।
[७२४] तृण वनस्पतिकाय आठ प्रकार का है, यथा-मूल, कंद, स्कंध, त्वचा, खाल, प्रवाल, पत्र, पुष्प ।
[७२५] चउरिन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वालों में आठ प्रकार का संयम होता है । यथा- नेत्र सुख नष्ट नहीं होता, नेत्र दुःख उत्पन्न नहीं होता, यावत्-स्पर्श सुख नष्ट नहीं होता, स्पर्श दुःख उत्पन्न नहीं होता ।।
चउरिन्द्रिय जीवों की हिंसा करने वालों के आठ प्रकार का असंयम होता है, यथानेत्र सुख नष्ट होता है, नेत्र दुःख उत्पन्न होता है, यावत्-स्पर्श दुःख उत्पन्न होता है ।