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स्थान-८/-/७२६
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[७२६] सूक्ष्म आठ प्रकार के हैं, यथा-प्राणसूक्ष्म-कुंथुआ आदि, पनक सूक्ष्मलीलण, फूलण, बीज सूक्ष्म-बटबीज, हरित सूक्ष्म-लीली वनस्पति, पुष्पसूक्ष्म, अंडसूक्ष्मकृमियों के अंडे, लयनसूक्ष्म-कीड़ी नगरा, स्नेहसूक्ष्म-धुंअर आदि ।
[७२७] भरत चक्रवर्ती के पश्चात् आठ युग प्रधान पुरुष व्यवधान रहित सिद्ध हुये यावत्-सर्व दुःख रहित हुए । यथा-आदित्य यश, महायस, अतिबल, महाबल, तेजोवीर्य, कार्तवीर्य, दंडवीर्य, जलवीर्य ।।
[७२८] भगवान् पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर थे, यथा-शुभ, आर्य घोष, वशिष्ठ, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीर्य, भद्रयश ।
[७२९] दर्शन आठ प्रकार के कहे गये हैं, यथा-सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन, सम्यग्मिथ्यादर्शन, चक्षुदर्शन, यावत् केवलदर्शन और स्वप्नदर्शन ।
[७३०] औपमिक काल आठ प्रकार के कहे गये हैं, यथा-पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गलपरावर्तन, अतीतकाल, भविष्यकाल, सर्वकाल ।
[७३१] भगवान् अरिष्टनेमि के पश्चात् आठ युग प्रधान पुरुष मोक्ष में गये और उनकी दीक्षा के दो वर्ष पश्चात् वे मोक्ष में गये ।
[७३२] भगवान् महावीर से मुण्डित होकर आठ राजा प्रव्रजित हुए । यथा-वीरांगद, क्षीरयश, संजय, एणेयक, श्वेत, शिव, उदायन, शंख ।
[७३३] आहार आठ प्रकार के हैं, यथा-मनोज्ञ अशन, मनोज्ञ पान, मनोज्ञ खाद्य, मनोज्ञ स्वाद्य, अमनोज्ञ अशन, अमनोज्ञ पान, अमनोज्ञ खाद्य, अमनोज्ञ स्वाद्य ।
[७३४] सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के नीचे ब्रह्मलोक कल्प में रिटविमान के प्रस्तट में अखाडे के समान समचतुरस्त्र संस्थान वाली आठ कृष्णराजियां हैं, दो कृष्णराजियां पूर्व में, दो कृष्णराजियाँ दक्षिण में, दो कृष्णराजियाँ पश्चिम में, दो कृष्णराजियां उत्तर में ।
. पूर्व दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिण दिशा को बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है । दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि पश्चिम दिशा की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है । पश्चिम दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि उत्तर दिशा की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है । उत्तर दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि पूर्व दिशा की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है ।
पूर्व और पश्चिम दिशा की दो बाह्य कृष्णराजियां पट्कोण हैं । उत्तर और दक्षिण दिशा की दो बाह्य कृष्णराजियां त्रिकोण हैं । सभी आभ्यन्तर कृष्णराजियां चौरस हैं ।।
आठ कृष्णराजियों के आठ नाम हैं- यथा-कृष्णराजि, मेघराजि, मघाराजि, माधवती, वातपरिधा, वातपरिक्षोभ, देवपरिधा, देवपरिक्षोभ ।।
इन आठ कृष्णराजियों के मध्य भाग में आठ लोकान्तिक विमान हैं, यथा-अर्चि, अर्चिमाली, वैरोचन, प्रभंकर, चन्द्राभ, सूर्याभ, सुप्रतिष्ठाभ, अग्नेयाभ । इन आठ लोकान्तिक विमानों में अजघन्योत्कृष्ट आठ सागरोपम स्थितिवाणा आठ लोकान्तिक देव रहते हैं, यथा
[७३५] सारस्वत, आदित्य, वह्नि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय ।
[७३६] धर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, अधर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, आकाशास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, जीवास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं ।
[७३७] महापद्म अर्हन्त आठ राजाओं को मुण्डित करके तथा गृहस्थ का त्याग करा