________________
११४
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
उत्पन्न हुआ । चित्रा नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त हुए ।
I
पुष्पदन्त अर्हन्त के पांच कल्याणक मूल नक्षत्र में हुए, यथा- मूल नक्षत्र में देवलोक से च्यवकर गर्भ में उत्पन्न हुए । मूल नक्षत्र में जन्म यावत् निर्वाण कल्याणक हुआ । [४४६] पद्मप्रभ अर्हन्त के पांच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए । पुष्पदन्त अर्हन्त के पांच कल्याणक मूल नक्षत्र में हुए । शीतल अर्हन्त के पांच कल्याणक पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हुए । विमल अर्हन्त के पांच कल्याणक उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हुए 1
[४४७] अनन्त अर्हन्त के पांच कल्याणक रेवति नक्षत्र में हुए । धर्मनाथ अर्हन्त के पांच कल्याणक पुष्य नक्षत्र में हुए । शांतिनाथ अर्हन्त के पांच कल्याणक भरणी नक्षत्र में हुए । कुन्थुनाथ अर्हन्त के पांच कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए । अरनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक स्वति नक्षत्र में हुए ।
[ ४४८] मुनिसुव्रत अर्हन्त के पांच कल्याणक श्रवण नक्षत्र में हुए । नमि अर्हन्त के पांच कल्याणक अश्विनी नक्षत्र में हुए । नेमिनाथ अर्हन्त के पांच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए । पार्श्वनाथ अर्हन्त के पांच कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुए । महावीर के पांच कल्याणक हस्तोत्तरा (चित्रा) नक्षत्र में हुए I
[४४९] श्रमण भगवान् महावीर के पांच कल्याणक हस्तोत्तरा नक्षत्र में हुए । महावीर हस्तोत्तरा नक्षत्र में देवलोक से च्यवकर गर्भ में उत्पन्न हुए । हस्तोत्तरा नक्षत्र में देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में आये । हस्तोत्तरा नक्षत्र में जन्म हुआ । हसतोत्तरा नक्षत्र में दीक्षित हुए । और हस्तोत्तरा नक्षत्र में केवलज्ञान - दर्शन उत्पन्न हुआ ।
स्थान- ५ उद्देशक - २
[४५०] निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को ये पाँच महानदियाँ एक मास में दो या तीन बारतैर कर पार करना या नौका द्वारा पार करना नहीं कल्पता है । यथा - गंगा, यमुना, सरयू, ऐरावती, मही । पाँच कारणों से पार करना कल्पता है, क्रुद्ध राजा आदि के भय से | दुष्काल होने पर । अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर । बाढ़ के प्रवाह में बहते हुए व्यक्तियों को निकालने के लिये । किसी महान् अनार्य द्वारा पीड़ित किये जाने पर ।
[४५१] निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को प्रावृट् ऋतु (प्रथम वर्षा ) में ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है, किन्तु पांच कारणों से कल्पता है । यथा - क्रुद्ध राजा आदि के भय से । दुष्काल होने पर- यावत् किसी महान् अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर ।
वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए विहार करना नहीं कल्पता है । पाँच कारणों से विहार करना कल्पता है, यथा- ज्ञान प्राप्ति के लिये, दर्शन - सम्यकत्व की पुष्टि के लिये । चारित्र की रक्षा के लिये । आचार्य या उपाध्याय के मरने पर अन्य आचार्य या उपाध्याय के आश्रय में जाने के लिये । आचार्यादि द्वारा या अन्यत्र रहे हुए आचार्यादि की सेवा के लिए भेजने पर ।
[४५३] पाँच अनुद्घातिक (महा प्रायश्चित देने योग्य) कहे गये हैं, यथा - हस्त कर्म करने वाले को, मैथुन सेवन करने वाले को, रात्रि भोजन करने वाले को, सागारिक के घर से लाया हुआ आहार खाने वाले को । राजपिंड खाने वाले को ।