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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
पांच प्रकार का असंयम होता है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय असंयम यावत्-स्पर्शेन्द्रिय असंयम । सभी प्राण, भूत, सत्त्व और जीवों की हिंसा न करने वालों के पांच प्रकार का संयम होता है, यथा-एकेन्द्रिय संयम यावत्-पंचेन्द्रिय संयम । सभी प्राण, भूत, सत्त्व और जीवों की हिंसा करने वालों के पांच प्रकार का असंयम होता है, यथा- एकेन्द्रिय असंयम यावत् पंचेन्द्रिय असंयम ।
[४६९] तृणवनस्पति कायिक जीव पांच प्रकार के हैं, यथा- अग्रबीज, मूल बीज, पर्व बीज, स्कन्ध बीज, बीज रुह ।
[४७०] आचार पांच प्रकार का है, यथा-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार |
[४७१] आचार प्रकल्प पांच प्रकार का है, यथा- मासिक उद्घातिक- लघुमास, मासिक अनुद्घातिक-गुरुमास, चातुर्मासिक उद्घातिक- लघु चौमासी, चातुर्मासिक अनुद्घातिक - गुरु चौमासी, आरोपणा - प्रायश्चित में वृद्धि करना ।
आरोपणा पांच प्रकार की है, यथा- प्रस्थापिता- आरोपणा करने के गुरुमास आदि प्रायश्चित रूप तपश्चर्या का प्रारम्भ करना । स्थापिता - गुरुजनों की वैयावृत्त्य करने के लिये आरोपित प्रायश्चित के अनुसार भविष्य में तपश्चर्या करना । कृत्स्ना - वर्तमान जिन शासन में उत्कृष्ट तप मास का माना गया है अतः इससे अधिक प्रायश्चित न देना । अकृत्स्ना - यदि दोष के अनुसार प्रायश्चित देने पर छः मास से अधिक प्रायश्चित आता हो तथापि छः मास काही प्रायश्चित देना । हाडहड़ा - लघुमास आदि प्रायश्चित शीघ्रतापूर्वक देना ।
[४७२] जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के उत्तर में पांच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा- माल्यवंत, चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट, एक शैल । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के दक्षिण में पांच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा- त्रिकूट, वैश्रमणकूट, अंजन, मातंजन, सोमनस । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पश्चिम में सीता महानदी के दक्षिण में पांच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा-विद्युत्प्रभ, अंकावती, पद्मावती, आशिविष, सुखावह । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पश्चिम में सीता महानदी के उत्तर में पांच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथाचन्द्रपर्वत, सूर्यपर्वत, नागपर्वत, देवपर्वत, गंधमादनपर्वत ।
जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण में देव कुरुक्षेत्र में पांच महाद्रह हैं, यथा - निषधद्रह, देवकुरुद्रह, सूर्यग्रह, सुलहद्रह, विद्युत्प्रभद्रह । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के के दक्षिण में उत्तर कुरुक्षेत्र में पाँच महाग्रह हैं, नीलवंतद्रह, उत्तर कुरुद्रह, चन्द्रद्रह एरावणद्रह, माल्यवतद्रह । सीता, सीतोदा महा नदी की ओर तथा मेरु पर्वत की ओर सभी वक्षस्कार पर्वत ५०० योजन ऊँचे हैं, और ५०० गाउ भूमि में गहरे हैं । घातकीखण्ड के पूर्वार्ध में मेरु पर्वत के पूर्व में, सीता महानदी के उत्तर में पाँच वक्षस्कार पर्वत है [ जम्बूद्वीप के समान ], घातकीखण्ड
पश्चिमार्ध में [जम्बूद्वीप के समान ], पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में भी जम्बूद्वीप के समान वक्षस्कार पर्वत और द्रहों की ऊँचाई आदि कहना चाहिये । समय क्षेत्र में पांच भरत, पांच ऐरवत - यावत्-पांच मेरु और पांच मेरु चूलिकायें है ।
[४७३] कौशलिक अर्हन्त ऋषभदेव पांच सौ धनुष के ऊंचे थे । चक्रवर्ती महाराजा भरत पांच सौ धनुष ऊंचे थे । बाहुबली अणगार भी इतने ही ऊंचे थे । ब्राह्मी नाम की आर्या