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स्थान- ६/-/ ५६२
आभ्यन्तर तप-छह प्रकार का है, यथा- १. प्रायश्चित्त-आलोचनादि दस प्रकार का प्रायश्चित । २. विनय - जिस तप के द्वारा विशेष रूप से कर्मों का नाश हो । ३. वैयावृत्यसेवा, सुश्रूषा । ४. स्वाध्याय - विविध प्रकार का अभ्यास करना । ५. ध्यान- एकाग्र होकर चिंतन करना । ६. व्युत्सर्ग-परित्याग । चित्त की चंचलता के कारणों का परित्याग करना । [५६३] विवाद छः प्रकार का है, यथा- १. अवष्वष्क्य - पीछे हटकर प्रारम्भ में कुछ सामान्य तर्क देकर समय बितावे और अनुकूल अवसर पाकर प्रतिवादी पर आक्षेप करे । २. उत्ष्वष्क्य - पीछे हटाकर किसी प्रकार प्रतिवादी से विवाद बंध करावे और अनुकूल अवसर पाकर पुनः विवाद करे । ३. अनुलोम्य - सभ्यो को और सभापति को अनुकूल करके विवाद करे । ४. प्रतिलोम्य - सभ्यों को और सभापति को प्रतिकूल करके विवाद करे । ५. भेदयित्वासभ्यों में मतभेद पैदा करके विवाद करे । ६. मेलयित्वा - कुछ सभ्यों को अपने पक्ष में मिलाकर विवाद करे ।
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[५६४] क्षुद्र प्राणी छः प्रकार के हैं, यथा- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, सम्मूर्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, तेजस्कायिक, वायु कायिक ।
[५६५ ] गौचरी छः प्रकार की है, पेटा - गांव के चार विभाग करके गौचरी करना । अर्ध पेट- गांव के दो विभाग करके गौचरी करना । गौमूत्रिका - घरों की दो पंक्तियों में
मूत्रिका के समान क्रम बना कर गौचरी करे । पतंगवीथिका - पतंगिया की उड़ान के समान बिना क्रम के गौचरी करना । शंबुक वृत्ता-शंख के वृत्त की तरह घरों का क्रम बनाकर गौचरी करना । गत्वा प्रत्यागत्वा - प्रथम पंक्ति के घरों में क्रमशः आद्योपान्त गौचरी करके द्वितीय पंक्ति के घरों में क्रमशः आद्योपान्त गोचरी करना ।
[५६६] जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में - इस रत्नप्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त ( अत्यन्त घृणित ) महा नरका वास हैं, लोल, लोलुप, उद्दग्ध, निर्दग्ध, जरक, प्रजरक । चौथी पंक प्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त ( अत्यन्त घृणित ) महा नरकावास हैं, यथाआर, वार, मार, रोर, रोरुक, खाडखड़ ।
[५६७] ब्रह्मलोक कल्प में छह विमान - प्रस्तर हैं, यथा- अरज, विरज, निरज, निर्मल, वित्तमिर, विशुद्ध ।
[५६८] ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के साथ छह नक्षत्र ३०, ३० मुहूर्त तक सम्पूर्ण क्षेत्र में योग करते हैं । यथा- पूर्वाभद्रपद, कृत्तिका, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मूल, पूर्वाषाढ़ा ।
ज्योतिकेन्द्र चन्द्र के साथ छह नक्षत्र १५-१५ मुहूर्त तक आधे क्षेत्र में योग करते हैं, यथा- शतभिषा, भरणी, आद्रा, अश्लेषा, स्वाती, ज्येष्ठा
ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के साथ छह नक्षत्र आगे और पीछे दोनों ओर ४५-४५ मुहूर्त तक योग करते हैं, यथा- रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, उत्तराषाढ़ा ।
[५६९] अभिचन्द्र कुलकर छः सौ धनुष के ऊँचे थे । [ ५७० ] भरत चक्रवर्ती छह लाख पूर्व तक महाराजा रहे ।
[५७१] भगवान पार्श्वनाथ के छः सौ वादी मुनियों की संपदा थी वे वादी मुनि देव - मनुष्यों की परिषद् में अजेय थे ।