________________
१२८
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
प्रतिलेखना करना । अमोसली-वस्त्र को मसले बिना प्रतिलेखना करना । छ: पुरिमा और नव खोटका ।
[५५५] लेश्याएं छः हैं, यथा- कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । तिर्यच पञ्चेन्द्रियों में छह लेश्यायें हैं, यथा- कृष्णलेश्या यावत् शुक्ल लेश्या । मनुष्य और देवताओं में छः लेश्यायें हैं, यथा- कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या ।
[५५६] शक्र देवेन्द्र देवराज सोम महाराजा की छः अग्रमहिषियां हैं । [५५७] ईशान देवेन्द्र की मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति छ:-पल्योपम की है ।
[५५८] छः श्रेष्ठ दिककुमारियां हैं, यथा- रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती, रूपकांता, रूपप्रभा । छः श्रेष्ठ विद्युत्कुमारियां है, आला, शुक्रा, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घनविद्युता ।
[५५९] धरण नागकुमारेन्द्र की छः अग्रमहिषियां हैं । यथा- आला, शुक्रा, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, धनविद्युता । भूतानन्द नाग कुमारेन्द्र की छः अग्रमहिषियां हैं यथा- रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती, रूपकांता, रूपप्रभा । घोष पर्यन्त दक्षिण दिशा के सभी देवेन्द्रों की अग्रमहिषियों के नाम धरणेन्द्र के समान हैं । महाघोष पर्यन्त उत्तर दिशा के सभी देवेन्द्रों की अग्र-महिषियों के नाम भूतानन्द के समान हैं ।
[५६०] धरण नागकुमारेन्द्र के छः हजार सामानिक देव हैं । इसी प्रकार भूतानन्द यावत् महाघोष नागकुमारेन्द्र के छः हजार सामानिक देव हैं ।
[५६१] अवग्रहमति छ: प्रकार की हैं, यथा- १. क्षिप्रा-क्षयोपशम की निर्मलता से शंख आदि के शब्द को शीघ्र ग्रहण करनेवाली मति । २. बहु-शंख आदि अनेक प्रकार के शब्दों को ग्रहण करने वाली मति । ३. बहुविध-शब्दों के माधुर्य आदि पर्यायों को ग्रहण करने वाली मति । ४. ध्रुव-एक बार धारण किये हुये अर्थ को सदा के लिए स्मरण में रखनेवाली मति । ५. अनिश्रित-ध्वजादि चिह्न के बिना ग्रहण करने वाली मति । ६. असंदिग्ध-संशय रहित ग्रहण करनेवाली मति ।
ईहामति छः प्रकार की है, यथा- क्षिप्र ईहामति-शीध्र विचार करने वाली मतियावत्-संदेह रहित विचार करने वाली मति ।
अवायमति छः प्रकार की है । यथा- शीध्र निश्चय करने वाली मति यावत्-संदेह रहित निश्चय करने वाली मति ।
धारणा छः प्रकार की है, यथा- १. बहु धारणा-बहुत धारण करने वाली मति । २. बहुविध धारण-अनेक प्रकार से धारण करने वाली मति । ३. पुराण धारणा-पुराणे को धारण करनेवाली मति । ४. दुर्धर धारणा-गहन विषयों को धारण करने वाली मति । ५. अनिश्रित धारणा-ध्वजा आदि चिह्नों के बिना धारण करनेवाली मति । ६. असंदिग्ध धारणा संशय बिना धारण करनेवाली मति ।
[५६२] बाह्य तप छह प्रकार का है, यथा- १. अनशन-आहार त्याग, एक उपवास से लेकर छः मास पर्यन्त । २. ऊनोदरिका-कवल आदिन्यून ग्रहण करना । ३. भिक्षाचर्यानाना प्रकार के अभिग्रह धारण करके आहार आदि ग्रहण करना । ४. रस परित्याग-क्षीर आदि मधुर रसों का त्याग करना । ५. काय क्लेश-अनेक प्रकार के उत्कुटुक आदि आसन करना । ६. प्रति संलीनता-इन्द्रिय जय, कषाय जय और योगों का जय ।