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स्थान-५/२/४५९
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हो वहां उस व्यवहार से प्रवृत्ति करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ आज्ञा का आराधक होता है ।
[४६०] सोये हुये संयत मनुष्यों के पांच जागृत हैं, यथा- शब्द-यावत्-स्पर्श । जागृत संयत मनुष्यों के पांच सुप्त हैं, यथा- शब्द-यावत्-स्पर्श । सुप्त या जागृत असंयत मनुष्यों के पांच जागृत हैं, यथा-शब्द-यावत्-स्पर्श ।
[४६१] पांच कारणों से जीव कर्म-रज ग्रहण करता है, यथा-प्राणातिपात से-यावत्परिग्रह से । पांच कारणों से जीव कर्म-रज से मुक्त होता है, यथा-प्राणातिपात विरमण से - यावत्-परिग्रह विरमण से ।
[४६२] पांच मासवाली पांचवी भिक्षु-प्रतिमा धारण करनेवाले अणगार को पांच दत्ति आहार की और पांच-पांच दत्ति पानी की लेना कल्पता है ।
[४६३] पांच प्रकार के उपघात (आहारादि की अशुद्धि) हैं । यथा- उद्गमोपघातगृहस्थ द्वारा लगनेवाले आधाकर्म आदि सोलह दोष । उत्पादनोपघात-साधु द्वारा लगने वाले धात्री आदि सोलहदोष । एषणोपघात-साधु और गृहस्थ द्वारा लगने वाले धात्री आदि सोलह दोष । परिकर्मोपघात-वस्त्र-पात्र के छेदन या सिलाई आदि में मर्यादा का उल्लंघन । परिहरणोपघात-एकाकी विचरने वाले साधु के वस्त्र-पात्रादि उपकरणों को उपयोग में लेना ।
पांच प्रकार की विशुद्धि कही गई है, यथा- उद्गमविशुद्धि, उत्पादमविशुद्धि, एषणा विशुद्धि, परिकर्मविशुद्धि, परिहरणविशुद्धि । पूर्वोक्त उद्गमादि दोषों का सेवन न करना विशुद्धि
[४६४] पांच कारणों से जीव दुर्लभ बोधी रूप कर्म बांधते हैं, यथा- अरिहन्तों का अवर्णवाद बोलने पर, अरिहन्त कथित धर्म का अवर्णवाद बोलने पर, आचार्यों या उपाध्यायों का अवर्णवाद बोलने पर, चतुर्विध संघका अवर्णवाद बोलने पर, उत्कृष्ट तप और ब्रह्मचर्य का पालन करने से हुए देवों का अवर्णवाद बोलने पर ।
__ पांच कारणों से जीव सुलभ बोधि रूप कर्म बांधते हैं । यथा- अरिहन्तों का गुणानुवाद करने पर-यावत्-उत्कृष्ट तप और ब्रह्मचर्य के पालने से हुए... देवों के गुणानुवाद करने पर ।
[४६५] प्रतिसंलीन पांच प्रकार के हैं, यथा- श्रोत्रेन्द्रिय प्रतिसंलीन-यावत्-स्पर्शेन्द्रिय प्रतिसंलीन । अप्रतिसंलीन पांच प्रकार के हैं, यथा- श्रोत्रेन्द्रिय अप्रतिसंलीन-यावत् स्पर्शेन्द्रिय अप्रतिसंलीन ।
संवर पाँच प्रकार के हैं, यथा- श्रोत्रेन्द्रिय संवर-यावत्-स्पर्शेन्द्रिय संवर । असंवर पांच प्रकार के हैं, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय असंवर-यावत्-स्पर्शेन्द्रिय असंवर ।
[४६६] संयम पांच प्रकार का है, यथा- सामायिक संयम, छेदोपस्थापनीय संयम, परिहार विशुद्धि संयम, सूक्ष्म संपराय संयम, यथाख्यात चारित्र संयम ।
[४६७] एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वाले को पांच प्रकार का संयम होता है, यथा-पृथ्वीकायिक संयम-यावत्-वनस्पतिकायिक संयम । एकेन्द्रिय जीवो की हिंसा करने वाले को पांच प्रकार का असंयम होता है, यथा- पृथ्वीकायिक असंयम-यावत्-वनस्पतिकायिक असंयम ।
[४६८] पञ्चेन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वालों के पांच प्रकार का संयम होता है, यथा- श्रोत्रेन्द्रिय संयम-यावत्-स्पर्शेन्द्रिय संयम । पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा करने वालों के