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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
यावत् रथ सेना । पांच सेनापति है । -दक्ष-पैदल सेना का सेनापति । सुग्रीव अश्वराजअश्व सेना का सेनापति । सुविक्रम हस्तिराज-हस्ति सेना का सेनापति । श्वेतकण्ठ महिषराजमहिष सेना का सेनापति । नन्दुत्तर-रथ सेना का सेनापति |
वेणुदेव सुपर्णेन्द्र की पाँच सेनापति और पाँच सेनाएँ । यथा- पैदल सेना यावत् स्थ सेना | धरण के सेनापतियों के नाम के समान वेणुदेव के सेनापतियों के नाम हैं । भूतानन्द के सेनापतियों के नाम के समान वेणुदालिय के सेनापतियों के नाम हैं ।
धरण के सेनापतियों के नाम के समान सभी दक्षिण दिशा के इन्द्रों के यावत् घोस के सेनापतियों के नाम हैं । भूतानन्द के सेनापतियों के नाम के समान सभी उत्तर दिशा के इन्द्रों के यावत् महाघोस के सेनापतियों से नाम हैं।
शक्रेन्द्र की पाँच सेनाएँ हैं और उनके पाँच सेनापति हैं । यथा- पैदलसेना, अश्वसेना, गजसेना, वृषभसेना, रथसेना । हरिणगमैषी-पैदलसेना का सेनापति । वायु अश्वराज-अश्वसेना का सेनापति । एरावण हस्तिराज-हस्तिसेना का सेनापति । दामर्धि वृषभराज-वृषभ सेना का सेनापति । माढर-रथ सेना का सेनापति ।
ईशानेन्द्र की पाँच सेनायें हैं, और उनके पाँच सेनापति हैं । यथा- पैदल सेना यावत् वृषभ सेना, और रथ सेना | पाँच सेनापति- लघुपराक्रम-पैदल सेना का सेनापति । महावायु अश्वराज-अश्वसेना का सेनापति । पुष्पदन्त हस्तिराज-हस्तिसेना का सेनापति । महादामर्धि वृषभराज-वृषभ सेना का सेनापति । महामाढर-रथसेना का सेनापति ।
शक्रेन्द्र के सेनापतियों के नाम के समान सभी दक्षिण दिशा के इन्द्रों के यावत् आरणकल्प के इन्द्रों के सेनापतियों के नाम हैं । ईशानेन्द्र के सेनापतियों के समान सभी उत्तर दिशा के इन्दों के यावत् अच्युतकल्प के इन्द्रों के सेनापतियों के नाम हैं ।
[४३९] शकेन्द्र की आभ्यन्तर परिषद के देवो की स्थिति पांच पल्योपम की कही गई है । ईशानेन्द्र की आभ्यन्तर परिषदा के देवियों की स्थिति पाँच पल्योपम की कही गई है ।
[४४०] पाँच प्रकार के प्रतिघात कहे गये हैं । यथा- गतिप्रतिघात-देवादि गतियों का प्राप्त न होना । स्थिति प्रतिघात-देवादि की स्थितियों का प्राप्त न होना । बंधन प्रतिघातप्रशस्त औदारिकादि बंधनों का प्राप्त न होना । भोग प्रतिघात-प्रशस्त भोग-सुख का प्राप्त न होना । बल, वीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम प्रतिघात-बल आदि का प्राप्त न होना ।
[४४१] पाँच प्रकार की आजीविका है । जातिआजीविका-जाति बताकर आजीविका करना । कुल आजीविका कुल बताकर आजीविका करना । कर्मआजीविका-कृषि आदि कर्म करके आजीविका करना । शिल्पआजीविका-वस्त्र आदि बुनकर आजीविका करना । लिंगआजीविका-साधु आदि का वेष धारण करके आजीविका करना ।
[४४२] पाँच प्रकार के राजचिन्ह हैं । खड्ग, छत्र, मुकुट, मोजड़ी, चामर ।
[४४३] पाँच कारणों से छद्मस्थजीव (साधु) उदय में आये हुए परीषहों और उपसर्गों को- समभाव से सहन करता है । समभाव से क्षमा करता है । समभाव से तितिक्षा करता है । समभाव से निश्चल होता है । समभाव से विचलित होता है । वह इस प्रकार है ।
__ कर्मोदय से यह पुरुष उन्मत्त है इसलिए:- मुझे आक्रोशवचनबोलता है । दुर्वचनों से मेरी भर्त्सना करता है । मुझे रस्सी आदि से बाँधता है । मुझे बंदीखाने में डालता है । मेरे