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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
संभोग चार प्रकार के है । यथा-एक राक्षस राक्षसी के साथ संभोग करता है । एक राक्षस मनुष्यणी के साथ संभोग करता है । एक मनुष्य राक्षसी के साथ संभोग करता है ।
एक मनुष्य मनुष्यणी के साथ संभोग करता है ।
[३८१] अपध्वंश (चारित्र के फल का नाश) चार प्रकार का है । यथा आसुरी भावनाजन्य-आसुर भाव, अभियोग भावनाजन्य-अभियोग भाव, संमोह भावनाजन्य-संमोह भाव, किल्विष भावना जन्य-किल्विष भाव
असुरायु का बन्ध चार कारणों से होता है । यथा-क्रोधी स्वभावसे, अतिकलह करने से । आहार में आसक्ति रखते हुए तप करनेसे, निमित्त ज्ञान द्वारा आजीविकोपार्जन करनेसे
अभियोगायु का बंध चार कारणों से होता हैं । यथा-अपने तप जप की महिमा अपने-मुंह करने से । दूसरो की निंदा करने से । ज्वरादि के उपशमन हेतु अभिमन्त्रित राख देने से । अनिष्ट की शान्ति के लिये मन्त्रोचार करते रहने से ।
संमोहायु बाँधने के चार कारण है । यथा-उन्मार्ग का उपदेश देने से, सन्मार्ग में अन्तराय देने से । काम-भोगों की तीव्र अभिलाषा से । अतिलोभ करके नियाणा करने से ।
देव किल्विष आयु बाँधने के चार कारण हैं । यथा-अरिहंतो की निंदा करने से । अरिहंत कथित धर्म की निंदा करने से, आचार्य-उपाध्याय की निंदा करने से । चतुर्विध संघ की निन्दा करने से ।
[३८२] प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-इहलोक के सुख के लिये दीक्षा लेना । परलोक के सुख के लिये दीक्षा लेना । इहलोक और परलोक के लिये दीक्षा लेना । किसी प्रकार की कामना न रखते रुए दीक्षा लेना । प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-शिष्यादि की कामना से दीक्षा लेना । पूर्व दीक्षित स्वजनों के मोह से दीक्षा लेना । उक्त दोनो कारणों से दीक्षा लेना । निष्काम भाव से दीक्षा लेना ।
प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-सद्गुरुओं की सेवा के लिए दीक्षा लेना । किसी के कहने से दीक्षा लेना । “तू दीक्षा लेगो तो मैं भी लूँगा” इस प्रकार वचनबद्ध होकर दीक्षा लेना । किसी वियोग से व्यथित होकर दीक्षा लेना । प्रव्रज्या चार प्रकार की है । किसी को उत्पीड़ित करके दीक्षा देना, किसी को अन्यत्र ले जाकर दीक्षा देना । किसी को ऋणमुक्त करके दीक्षा देना, किसी को भोजन आदि का लालच दिखाकर दीक्षा देना ।
प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-नटखादिता-नट की तरह वैराग्य रहित धर्म कथा करके आहारादि प्राप्त करना । सुभटखादिता-सुभट की तरह बल दिखाकर आहारादि प्राप्त करना । सिंहखादिता-सिंह की तरह दूसरे की अवज्ञा करके आहारादि प्राप्त करना । श्रृंगालखादिताश्रृंगाल की तरह दीनता प्रदर्शित कर आहारादि प्राप्त करना ।
कृषि चार प्रकार की है । यथा-एक कृषि में धान्य एक बार बोया जाता हैं । एक कृषि में धान्य आदि दो तीन बार बोया जाता है । एक कृषि में एक बार निनाण की जाती हैं । एक कृषि में बार-बार निनाण की जाती है । इसी प्रकार प्रव्रज्या चार प्रकार की है । एक प्रव्रज्या में एक बार सामायिकचारित्र धारण किया जाता है । एक प्रव्रज्या में बार-बार सामायिकचारित्र धारण किया जाता है । एक प्रव्रज्या में एक बार अतिचारों की आलोयणा की जाती है । एक प्रव्रज्या में बार-बार अतिचारों की आलोयणा की जाती हैं ।