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स्थान-४/४/३८७
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कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ (जल से) पूर्ण है-किन्तु उसमें पानी झरता हैं । एक कुम्भ (जल से) पूर्ण है-किन्तु उसमें से पानी झरता नहीं हैं । एक कुम्भ (जल से) अपूर्ण है किन्तु झरता हैं । एक कुम्भ अपूर्ण है किन्तु झरता नहीं है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं यथा-एक पुरुष (धन या श्रुत से) पूर्ण है और धन या श्रुत देता भी है । एक पुरुष पूर्ण है किन्तु देता नहीं है । एक पुरुष (धन या श्रुत से) अपरिपूर्ण है किन्तु यथाशक्ति या यथाज्ञान देता भी है । एक पुरुष अपूर्ण है और देता भी नहीं है ।
कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-खंडित, जोजरा, कच्चा और पक्का । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष मूल. प्रायश्चित योग्य होता है । एक पुरुष छेदादि प्रायश्चित योग्य होता है । एक पुरुष सूक्ष्म अतिचार युक्त होता हैं । एक पुरुष निरतिचार चारित्र युक्त होता है ।
कुंभ चार प्रकार के हैं, एक मधु कुम्भ है और उसका ढक्कन भी मधु पूरित है । एक मधु कुम्भ है किन्तु उसका ढक्कन विष पूरित हैं । एक विष कुम्भ है किन्तु उसका ढक्कन मधु पूरित है । एक विष कुम्भ है और उसका ढक्कन भी विष पूरित है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष सरल हृदय है और मधुरभाषी है । एक पुरुष सरल हृदय है किन्तु कटुभाषी है । एक पुरुष मायावी है किन्तु मधुरभाषी भी नहीं है । एक पुरुष मायावी है किन्तु मधुरभाषी भी है ।
[३८८] जिस पुरुष का हृदय निष्पाप एवं निर्मल हैं और जिसकी जिह्वा भी सदा मधुर भाषिणी है । उस पुरुष को मधु ढक्कनवाले मधुकुम्भ की उपमा दी जाती है ।
[३८१] जिस पुरुष का हृदय निष्पाप एवं निर्मल है किन्तु उसकी जिह्वा सदा कटुभाषिणी है तो उस पुरुष को विष पूरित ढक्कन वाले मधु कुम्भ की उपमा दी जाती है ।
[३९०] जो पापी एवं मलिन हृदय है और जिसकी जिह्वा सदा मधुर भाषिणी है । उस पुरुष को मधुपूरित ढक्कन वाले विष कुम्भ की उपमा दी जाती है ।
[३९१] जो पापी एवं मलिन हृदय है और जिसकी जिह्वा सदा कटुभाषिणी है उस पुरुष को विषपूरित ढक्कन वाले विष कुम्भ की उपमा दी जाती है |
[३९२] उपसर्ग चार प्रकार के हैं । देवकृत, मनुष्यकृत, तिर्यंचकृत, आत्मकृत ।
देवकृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं । यथा-उपहास करके उपसर्ग करता हैं । द्वेष करके उपसर्ग करता हैं । परीक्षा के बहाने उपसर्ग करता हैं । विविध प्रकार के उपसर्ग करता है । मनुष्य कृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं । पूर्ववत् एवं मैथुन सेवन की इच्छा से उपसर्ग करता हैं । तिर्यंच कृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं । यथा-भयभीत होकर उपसर्ग करता हैं । द्वेष भाव से उपसर्ग करता है । आहार के लिये उपसर्ग करता हैं । स्वस्थान की रक्षा के लिये उपसर्ग करता है । आत्मकृत उपसर्ग चार प्रकार के है । यथा-संघट्टन से-आंख में पड़ी हुई रज आदि को निकालने पर पीड़ा होती हैं । गिर पड़ने से । अधिक देर तक एक आसन से बैठने पर पीड़ा होती है । पग संकुचित कर अधिक देर तक बैठने से पीड़ा होती है ।
[३९३] कर्म चार प्रकार के हैं । यथा-एक कर्म प्रकृति शुभ है और उसका हेतु भी शुभ है । एक कर्म प्रकृति शुभ है किंतु उसका हेतु अशुभ है । एक कर्म प्रकृति अशुभ है किन्तु उसका हेतु शुभ है । एक कर्म प्रकृति अशुभ है और उसका हेतु भी अशुभ है ।