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स्थान-४/२/३२९
दिशाओं में देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानियाँ हैं । उनके नाम ये हैं- समणा, सोमणसा, अर्चिमाली और मनोरमा । चार अग्रमहिषियों के नाम-पद्मा, शिवा, शची और अंजू । इन अग्रमहिषियों की उक्त राजधानियां हैं । दक्षिण-पश्चिम स्थित रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानिया हैं । उनके नाम ये हैं - भूता, भूतवडिंसा, गोस्तूपा और सुदर्शना । अग्रमहिषियों के नाम- अमला, अप्सरा, नवमिका और रोहणी । इन अग्रमहिषियों की उक्त राजधानियां हैं । उत्तर-पश्चिम में स्थित रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानियां हैं । उनके नाम ये हैं-रत्ना, रत्नोच्चया, सर्वरत्ना और रत्नसंचया । अग्रमहिषियों के नाम-वसु, वसु गुप्ता, वसुमित्रा और वसुंधरा इन अग्रमहिषियां की उक्त राजधानियाँ हैं ।
[३३०] सत्य चार प्रकार का हैं । यथा-नाम सत्य, स्थापना सत्य, द्रव्य सत्य और भाव सत्य ।
[३३१] आजीविका (गोशालक) मतवालों का तप चार प्रकार हैं । यथा-उग्र तप, घोर तप, रसनि!ह तप जिह्वेन्द्रिय प्रतिसंलीनता |
[३३२] संयम चार प्रकार का हैं । यथा-मन संयम, वचन संयम, काय संयम और उपकरण संयम ।
त्याग चार प्रकार का है । मनत्याग, वचनत्याग, कायत्याग, उपकरण त्याग |
अकिंचनता चार प्रकार की हैं । यथा-मन अकिंचनता, वचन अकिंचनता, काय अकिंचनता, और उपकरण अकिंचनता ।
| स्थान-४-उद्देशक-३ [३३३] रेखाएं चार प्रकार की हैं । यथा-पर्वत की रेखा, पृथ्वी की रेखा, वालु की रेखा और पानी की रेखा । इसी प्रकार क्रोध चार प्रकार का हैं । यथा-पर्वत की रेखा समान, पृथ्वी की रेखा समान, वालु की रेखा समान, पानी की रेखा समान । पर्वत की रेखा के समान क्रोध करनेवाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता हैं । पृथ्वी की रेखा के समान क्रोध करनेवाला जीव मरकर तिर्यंच योनि में उत्पन्न होता हैं । वालु की रेखा के समान क्रोध करनेवाला जीव मरकर मनुष्य योनि में उत्पन्न होता हैं । पानी की रेखा के समान क्रोध करनेवाला जीव मरकर देव योनि में उत्पन्न होता हैं ।
उदक चार प्रकार का होता हैं । यथा-कर्दमोदक, खंजनोदक, वालुकोदक और शैलोदक । इसी प्रकार भाव चार प्रकार का हैं । यथा-कर्दमोदक समान, खंजोनदक समान, वालुकोदक समान और शैलोदक समान । कर्दमोदक समान भाव रखनेवाला जीव मरकर नरक में यावत् शैलोदक समान भाव रखनेवाला जीव मरकर देवयोनि में उत्पन्न होता हैं ।
[३३४] पक्षी चार प्रकार के हैं । यथा-एक पक्षी रुत सम्पन्न (मधुर स्वर वाला) हैं किन्तु रूप सम्पन्न नहीं हैं । एक पक्षी रूप सम्पन्न है किन्तु रुत सम्पन्न (मधुर स्वरवाला) नहीं हैं । एक पक्षी रूप सम्पन्न भी हैं और रुतसम्पन्न भी है । एक पक्षी रुत सम्पन्न भी नहीं हैं
और रूप सम्पन्न भी नहीं हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का हैं ।