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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वाली चार-चार मुक्तामालाओं से घिरी हुई हैं ।
उन प्रेक्षाघर मण्डपों के आगे चार मणिपीठिकाएँ हैं । उन मणिपीटिकाओं पर चार चैत्य स्तूप हैं । प्रत्येक चैत्य स्तूपों की चारों दिशाओं में चार-चार मणिपीठिकाएँ हैं । प्रत्येक मणिपीठिका पर पल्यंकासन वाली स्तूपाभिमुख सर्व रत्नमय चार जिनप्रतिमायें हैं । उनके नाम- रिषभ, वर्धमान, चन्द्रानन और वारिषेण । उन चेत्यस्तूपों के आगे चार मणिपीठिकाओं पर चार चैत्यवृक्ष हैं । उन चैत्य वृक्षों के सामने चार मणिपीठिकाएं हैं । उन मणिपीठिकाओं पर चार महेन्द्र ध्वजायें हैं | उन महेन्द्र ध्वजाओं के सामने चार नंदा पुष्करणियाँ हैं । प्रत्येक पुष्करणी की चारों दिशाओं में चार वन खंड हैं ।
[३२८] पूर्व में अशोक वन, दक्षिण में सप्तपर्ण वन, पश्चिम में चम्पक वन और उत्तर में आम्रवन ।
[३२९] पूर्व दिशावर्ती अंजनक पर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करणियाँ हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं - नंदुत्तरा, नंदा, आनंदा और नंदिवर्धना उन पुष्करणियों की लम्बाई एक लाख योजन हैं । चौड़ाई पचास हजार योजन हैं और गहराई एक हजार योजनहैं । प्रत्येक पुष्करणी की चारों दिशाओं में त्रिसोपान प्रतिरुपक हैं । उन त्रिसोपान प्रतिरूपकों के सामने पूर्वादि चार दिशाओं में चार तोरण हैं । प्रत्येक तोरण की पूर्वादि चार दिशाओं में चार वन खण्ड हैं । वन खण्डों के नाम इसी सूत्र के पूर्वोक्त हैं ।
उन पुष्करणियों के मध्यभाग में चार दधिमुख पर्वत हैं । इनकी ऊँचाई ६४,००० योजन, भूमि में गहराई एक हजार योजन की हैं । वे पर्वत सर्वत्र पल्यंक के समान आकार वाले हैं । इनकी चौड़ाई दस हजार योजन की हैं और परिधि इकतीस हजार छसो तेईस योजन की हैं । ये सभी रत्नमय - यावत् रमणीय हैं । उन दधिमुख पर्वत के उपर का भाग समतल हैं । “शेष समग्र कथन अंजनक पर्वतों के समान यावत्-उत्तर में आम्रवन तक" कहना ।
दक्षिण दिशा मे अंजनक पर्वत की चार दिशाओं में चार नन्दा पुष्करणियां हैं । उनके नाम हैं -भद्रा, विसाला, कुमुद और पोंडरिकिणी । पुष्करणियों का शेष वर्णन-यावत्-दधिमुखपर्वत वन-खण्ड पर्वत तक कहें । पश्चिम दिशा के अंजनक पर्वत की चारों दिशाओ में चार नन्दा पुष्परणियां हैं । उनके नाम हैं-नन्दिसेना, अमोघा, गोस्तूपा और सुदर्शना । शेष वर्णन पूर्ववत् । उत्तर दिशा के अंजनक पर्वत की चारों दिशाओं में चार नन्दा पुष्करणियां हैं । उनके नाम हैंविजया, वेजयन्ती,जयन्ती और अपराजिता । शेष वर्णन पूर्ववत् ।
वलयाकार विष्कम्भ वाले नन्दीश्वर द्वीप के मध्य भाग में चार विदिशाओं में चार रतिकर पर्वत हैं । उत्तर पूर्व में, दक्षिण-पूर्व में, दक्षिण-पश्चिम में और उत्तर-पश्चिम में । वे रतिकर पर्वत एक हजार योजन ऊंचे हैं, एक हजार गाउ भूमि में गहरे हैं । झालर के समान सर्वत्र सम संस्थान वाले हैं । दस हजार योजन की उनकी चौड़ाई हैं । इकतीस हजार छह सौ तेईस योजन उनकी परिधि हैं । सभी रत्नमय, यावत-रमणीय हैं ।
उत्तर पूर्व में स्थिति रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानियाँ है । उनके नाम ये हैं- नंदुत्तरा, नंदा, उत्तर कुरा और देवकुरा चार अग्रमहिषियों के नाम-कृष्णा, कृष्णराजी, रामा और रामरक्षिता | इन अग्रमहिषियों की उक्त राजधानियाँ हैं । दक्षिण पूर्व में स्थित रतिकर पर्वत की चारों