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स्थान- ४/२/३२५
योजन जानेपर चार वेलन्धर नागराजाओं के चार आवास पर्वत हैं । यथा- गोस्तुभ, उदकभास, शंख, दकसीम । इन चार आवास पर्वतों पर पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते यथा-गोस्तूप, शिवक, शंख और मनशिल ।
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जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से चार विदिशाओं में लवण समुद्र में ४२,००० योजन जाने पर अनुवेलंधर नागराजाओं के चार आवास पर्वत हैं । यथा-कर्कोटक, कर्दमक, केलाश और अरुणप्रभ । उन चार आवास पर्वतों पर पल्योपम स्थितिवाले चार महर्धिक देव रहते हैं । यथा-इन देवों के नाम पर्वतों के समान हैं ।
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लवण समुद्र में चार चन्द्रमा अतीत में प्रकाशित हुए थे वर्तमान में प्रकाशित होते हैं और भविष्य में प्रकाशित होंगे । लवण समुद्र में सूर्य अतीत में तपे थे वर्तमान में तपते हैं। और भविष्य में तपेंगे । इसी प्रकार चार कृतिका यावत्- चारभाव केतु पर्यन्त सूत्र कहें । लवण समुद्र के चार द्वार हैं इनके नाम जम्बूद्वीप के द्वारों के समान हैं । इस द्वारों पर पल्योपम स्थितिवाले चार महर्धिक देव रहते हैं । उनके नाम भी जम्बूद्वीप समान है ।
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[ ३२६] धातकीखंड द्वीप का वलयाकार विष्कम्भ चार लाखयोजन का हैं ?
जम्बूद्वीप के बाहर चार भरत क्षेत्र और चार ऐवत क्षेत्र हैं । इसी प्रकार पुष्करार्धद्वीप पूर्वार्ध पर्यन्त द्वितीय स्थान उद्देशक तीन में उक्त मेरुचूलिका तक के पाठ की पुनरावृत्ति करें, और उसमें सर्वत्र चार की संख्या कहें ।
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[३२७] वलयाकार विष्कम्भवाले नन्दीश्वर द्वीप के मध्य चारों दिशाओं में चार अंजनक पर्वत हैं । यथा- पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम मे, और उत्तर में। वे अंजनक पर्वत ८४,००० योजन ऊँचे हैं और एक हजार योजन भूमि में गहरे हैं । उन पर्वतों के मूल का विष्कम्भ दस हजार योजन का हैं । फिर क्रमशः कम होते होते ऊपर का विष्कम्भ एक हजार योजन का हैं । उन पर्वतों की परिधि मूल में इकतीस हजार छसों तेईस योजन की हैं । फिर क्रमशः कम होते-होते ऊपर की परिधि तीन हजार एक सौ छासठ योजन की हैं । वे पर्वत मूल में विस्तृत, मध्य में संकरे और ऊपर पतले अर्थात् गो पुच्छ की आकृतिवाले हैं । सभी अंजनक पर्वत अंजन रत्न मय हैं, स्वच्छ हैं, कोमल हैं, घुटे हुए और धिसे हुए हैं । रज, मल और कर्दम रहित हैं । अनिन्द्य सुषमावाले है, स्वतः चमकनेवाले हैं। उनसे किरणें निकल रही हैं, अतः उद्योतित हैं । वे प्रासादीय, दर्शनीय है, मनोहर एवं रमणीय हैं ।
उन अंजनक पर्वतों का ऊपरीतल समतल हैं उन समतल उपरितलों के मध्य भाग में चार सिद्धायतन हैं । उन सिद्धायतनों की लम्बाई एक सौ योजन की है, चौड़ाई पचास योजन की है और ऊंचाईं बहत्तर योजन की हैं ।
उन सिद्धायतनों की चार दिशाओं यथा-देवद्वार, असुरद्वार, नागद्वार और सुपर्णद्वार । उन द्वारों पर चार प्रकार के देव रहते हैं । यथा-देव, असुर, नाग और सुपर्ण ।
उन द्वारों के आगे चार मुखमण्डप हैं । उन मुखमण्डपों के आगे चार प्रेक्षाघर मण्डप हैं । उन प्रेक्षाधर मण्डपों के मध्य भाग में चार वज्रमय अखाड़े हैं । उन वज्रमय अखाड़ों के मध्य भाग में चार मणिपीठिकायें हैं । उन मणिपीठिकाओं के ऊपर चार सिंहासन हैं । उन सिंहासनो पर चार विजयदूष्य हैं । उन विजयदूष्यों के मध्यभाग में चार वज्रमय अंकुश हैं । उन वज्रमय अंकुशों पर लघु कुंभाकार मोतियों की चार मालायें हैं । प्रत्येक माला अर्धप्रमाण