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स्थान-४/४/३६२
स्थान-४-उद्देशक-४ | [३६२ विदेश जानेवाले पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष जीवन निर्वाह के लिए विदेश जाता हैं । एक पुरुष संचित सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए विदेश जाता हैं । एक पुरुष सुख-सुविधा के लिए विदेश जाता हैं । एक पुरुष प्राप्त सुख-सुविधा की सुरक्षा के लिए विदेश जाता हैं ।
[३६३] नैरयिकों का आहार चार प्रकार का हैं । यथा-अंगारों जैसा अल्पदाहक । प्रज्वलित अग्नि कणों जैसा अतिदाहक । शीतकालीन वायु के समान शीतल । बर्फ के समान अतिशीतल | तिर्यंचो का आहार चार प्रकार का हैं । यथा-कंक पक्षी के आहार जैसा अर्थात् दुष्पच आहार भी तिर्यंचो को सुपच होता हैं । बिल में जो भी डालें सब तुरन्त अन्दर चला जाता है उसी प्रकार तिर्यंच स्वाद लिए बिना सीधा उदरस्थ कर लेते हैं । चाण्डाल के मांस समान अभक्ष्य भी तिर्यंच खा लेते हैं । पुत्र माँस के समान तीव्र क्षुधा के कारण अनिच्छापूर्वक खाते हैं । मनुष्यों का आहार चार प्रकार का है । यथा- अशन-पान-खादिम-स्वादिम | देवताओं का आहार चार प्रकार का हैं । सुवर्ण, सुगन्धित, स्वादिष्ट और सुखद स्पर्शवाला |
[३६४] आशि-विष चार प्रकार का हैं । यथा-वृश्चिक जाति का आशिविष, मंडूक जातिका आशिविष, सर्प जाति का आषिविष, मनुष्य जाति का आषिविष ।
- हे भगवन् ! बिच्छु जाति का आशिषि कितना प्रभावशाली हैं ? आधे भरत क्षेत्र जितने बड़े शरीर को एक बिच्छु का विष प्रभावित कर देता हैं । यह केवल विष का प्रभावमात्र बताया हैं । अब तक न इतने बड़े शरीर को प्रभावित किया हैं, न वर्तमान में भी प्रभावित करता हैं और न भविष्य में भी प्रभावित कर सकेगा । हे भगवन् ! मंडूक जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली हैं ? भरत क्षेत्र जिते बड़े शरीर को एक मंडूक का विष प्रभावित कर देता हैं । शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! सर्प जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली है ? जम्बूद्वीप जितने बड़े शरीर को एक सर्प का विष प्रभावित कर देता है । शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! मनुष्य जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली हैं ? समय क्षेत्र जितने बड़े शरीर को एक मनुष्य का विष प्रभावित कर देता है । शेष पूर्ववत् ।
३६५] व्याधियाँ चार प्रकार की हैं । यथा-वातजन्य, पित्तजन्य, कफजन्य और सन्निपातजन्य । चिकित्सा चार प्रकार की है । वैद्य, औषध, रोगी और परिचारक ।
[३६६] चिकित्सक चार प्रकार के हैं । एक चिकित्सक स्वयं की चिकित्सा करता है किन्तु दूसरे की चिकित्सा नहीं करता हैं । एक चिकित्सक दूसरे की चिकित्सा करता हैं किन्तु स्वयं की चिकित्सा नहीं करता है । एक चिकित्सक स्वयं की भी चिकित्सा करता है और अन्य की भी चिकित्सा करता हैं । एक चिकित्सक न स्वयं की चिकित्सा करता हैं और न अन्य की चिकित्सा करता है । पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष व्रण (शल्य चिकित्सा) करता हैं किन्तु व्रण को स्पर्श नहीं करता । एक पुरुष व्रण को स्पर्श करता हों किन्तु व्रण नहीं करता । एक पुरुष व्रण भी करता हैं और व्रण का स्पर्श भी करता हैं । एक पुरुष व्रण भी नहीं करता और व्रण का स्पर्श भी नहीं करता ।
पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष व्रण करता हैं किन्तु व्रण की रक्षा नहीं करता ।