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स्थान- ३/१/१५१
सुषमआरक का काल इतना ही हैं । आगामी उत्सर्पिणी के सुषमआरक का काल इतना ही होगा । इसी तरह धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में भी । इसी तरह अर्ध पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी काल का कथन करना ।
जम्बूद्वीपवर्ती भरत ऐवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल के सुषमसुषमा आरे में मनुष्य तीन कोस की ऊंचाई वाले और तीन पल्योपम के परमायुष्य वाले थे । इसी तरह इस अवसर्पिणी काल और आगामी उत्सर्पिणी काल में भी समझना चाहिए । जम्बूद्वीपवर्ती देवकुरु और उत्तरकुरु में मनुष्य तीन कोस की ऊंचाई वाले कहे गये हैं तथा वे तीन पल्योपम की परमायु वाले हैं । इसी तरह अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध तक का कथन करना चाहिए ।
जम्बूद्वीपवर्ती भरत - ऐखत क्षेत्र में एक एक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी में तीन वंश (उत्तम पुरुष परम्परा) उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे, यथा- अर्हन्तवंश, चक्रवर्ती - वंश और दशाहवंश । इसी तरह अर्ध पुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध तक कथन करना चाहिए । जम्बूद्वीप के भरत, ऐवत क्षेत्र में एक एक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल में तीन प्रकार के उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे, यथा- अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव - वासुदेव । इस प्रकार अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध तक समझना चाहिए ।
तीन यथायु का पालन करते हैं (निरुपक्रम आयुवाले होते हैं), यथा- अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव - वासुदेव । तीन मध्यमायु का पालन करते हैं (वृद्धत्व रहित आयु वाले होते हैं) । यथा - अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव - वासुदेव ।
[१५२] बादर तेजस्काय के जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तीन अहोरात्र की कही गई हैं, बादरवायुकाय की उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष की कही गई हैं ।
[१५३] हे भदन्त ! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव इन धान्यों को कोठों में सुरक्षित रखने पर, पल्य में सुरक्षित रखने पर, मंच पर सुरक्षित रखने पर, ढक्कन लगाकर, लीप कर, सब तरफ लीप कर, रेखादि के द्वारा लांच्छित करने पर, मिट्टी की मुद्रा लगाने पर अच्छी तरह बन्द रखने पर इनकी कितने काल तक योनि रहती हैं ?
गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तीन वर्ष तक योनि रहती हैं, इसके बाद योनि म्लान हो जाती हैं, इसके बाद ध्वंसाभिमुख होती हैं, नष्ट हो जाती हैं, इसके बाद जीव अजीव हो जाता हैं और तत्पश्चात् योनि का विच्छेद हो जाता हैं ।
[१५४] दूसरी शर्कराप्रभा नरक - पृथ्वी के नारकों की तीन सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति हैं । तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी में नारकों की तीन सागरोपम की जघन्य स्थिति हैं । [१५५] पांचवीं धूमप्रभा - पृथ्वी में तीन लाख नरकावास कहे गये हैं ।
तीन नरक - पृथ्वियों में नारकों को उष्णवेदना कही गई हैं, यथा- पहली, दूसरी और तीसरी नरक में । तीन पृथ्वियों में नारक उष्णवेदना का अनुभव करते हैं, यथा- प्रथम, दूसरी और तीसरी नरक में ।
[१५६] लोक में तीन समान प्रमाण ( लम्बाई-चौडाई) वाले, समान पार्श्व ( आजूबाजू) वाले और सब विदिशाओं में भी समान कहे गये हैं, यथा- अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप, सवार्थसिद्ध महाविमान । लोक में तीन समान प्रमाण वाले, समान पार्श्ववाले और सब विदिशाओं में समान कहे गये हैं, यथा-सीमन्त नरकावास, समयक्षेत्र, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी ।