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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
व्यवसाय, उभयलौकिक व्यवसाय । ऐहलौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है, यथालौकिक, वैदिक और सामयिक । लौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैं, यथा-अर्थ, धर्म और काम, वैदिकव्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैं, यथा- ऋग्वेद में कहा हुआ, यजुर्वेद में कहा हुआ, सामवेद में कहा हुआ । सामयिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैं, यथा- ज्ञान, दर्शन और चारित्र ।
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तीन प्रकार की अर्थयोनि कही गई हैं, यथा - साम, दण्ड और भेद ।
[१९९] तीन प्रकार के पुद्गल कहे गये हैं, यथा- प्रयोगपरिणत, मिश्रक्षपरिणत और स्वतः परिणत । नरकावास तीन के आधार पर रहे हुए हैं, यथा- पृथ्वी के आधार पर, आकाश के आधार पर, स्वरूप के आधार पर नैगम संग्रह और व्यवहार नय से पृथ्वीप्रतिष्ठित । ऋजुसूत्र नय के अनुसार आकाशप्रतिष्ठित । तीन शब्दनयों के अनुसार आत्मप्रतिष्ठित ।
[२००] मिथ्यात्व तीन प्रकार का कहा गया हैं, यथा-अक्रिया मिथ्यात्व, अविनय मिथ्यात्व, अज्ञान मिथ्यात्व |
अक्रिया 'दुष्ट क्रिया' तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा- प्रयोगक्रिया, सामुदानिक क्रिया, अज्ञान क्रिया । प्रयोग क्रिया तीन प्रकार की हैं, यथा मनः प्रयोग क्रिया, वचन प्रयोग क्रिया, कायप्रयोग क्रिया । समुदान क्रिया तीन प्रकार की हैं, यथा - अनन्तर समुदान क्रिया, परम्पर समुदान क्रिया तदुभय समुदान क्रिया । अज्ञान क्रिया तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा-मति - अज्ञान क्रिया, श्रुत-अज्ञान क्रिया और विभंग अज्ञान क्रिया
अविनय तीन प्रकार का हैं, देशत्यागी, निराम्बनता, नाना प्रेम-द्वेष अविनय
अज्ञान तीन प्रकार का कहा गया हैं । प्रदेश अज्ञान, सर्व अज्ञान, भाव अज्ञान । [२०१] धर्म तीन प्रकार का हैं, श्रुतधर्म, चारित्रधर्म और अस्तिकाय - धर्म उपक्रम तीन प्रकार का कहा गया हैं, यथा - धार्मिक उपक्रम, अधार्मिक उपक्रम और मिश्र उपक्रम । अथवा तीन प्रकार का उपक्रम कहा गया हैं, यथा- आत्मोपक्रम, परोपक्रम और तदुभयोपक्रम । इसी तरह वैयावृत्य, अनुग्रह, अनुशासन और उपालम्भ । प्रत्येक के तीन-तीन आलापक उपक्रम के समान ही कहने चाहिए ।
[२०२] कथा तीन प्रकार की कही गई हैं, अर्थकथा, धर्मकथा और कामकथा । विनिश्चय तीन प्रकार के कहे हैं, अर्थविनिश्चय, धर्मविनिश्चय और कामविनिश्चय
[२०३] श्री गौतम स्वामी भगवान् महावीर से पूछते हैं - हे भगवन् ! तथारूप श्रमणमाहन की सेवा करने वाले को सेवा का क्या फल मिलता हैं ? भगवान् बोले - हे गौतम उसे धर्मश्रवण करने का फल मिलता हैं । हे भगवन् ! धर्म-श्रवण करने का क्या फल होता है ? धर्मश्रवण करने से ज्ञान की प्राप्ति होती हैं । हे भगवन् ! ज्ञान का फल क्या हैं ? हे गौतम! ज्ञान का फल विज्ञान हैं इस प्रकार इस अभिलापक से यह गाथा जान लेनी चाहिये ।
[२०४] श्रवण का फल ज्ञान, ज्ञान का फल विज्ञान, विज्ञान का फल प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का फल संयम, संयम का फल अनाश्रव, अनाश्रव का फल 'तप' तप का फल व्यवदान व्यवदान काफल अक्रिया । अक्रिया का फल निर्वाण है । हे भगवन् ! निर्वाण का क्या फल हैं ? हे श्रमणायुष्मन् ! सिद्धगति में जाना ही निर्वाण का सर्वान्तिम प्रयोजन हैं ।